समास MCQ Quiz in मराठी - Objective Question with Answer for समास - मोफत PDF डाउनलोड करा
Last updated on Mar 10, 2025
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समास Question 1:
‘चौरभयम्’ पद में प्रयुक्त तत्पुरुष समास किस विभक्ति का है?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 1 Detailed Solution
स्पष्टीकरण:- ‘चौरभयम्’ का समासविग्रह होता है- चौराद् भयम्।
सूत्र:- ‘पञ्चमी भयेन’ अर्थात् भय होने पर पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:-प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में 'च' जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5)बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 2:
'यूपदारु' पद में समास है
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 2 Detailed Solution
‘यूपदारु’ में तत्पुरुषः समास है।
- यूपदारु का विग्रह 'यूपाय दारु' होगा जिसका अर्थ है खूंटे के लिए लकड़ी।
- यह समास उत्तरपद प्रधान है और प्रथम पद चतुर्थी होने से 'चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः' इस सूत्र से चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 3:
'गृहगतः' उदाहरणमिदं विद्यते-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 3 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'गृहगतः' यह उदाहरण है-
शब्द - 'गृहगतः'
समासविग्रह - गृहं गतः
सूत्र:- ‘द्वितीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः’ सूत्र से गतः पद होने के कारण यहाँ द्वितीया तत्पुरुष समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:-प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में 'च' जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5)बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 4:
'राजपुरुषः' अस्मिन् पदे समासः अस्ति
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 4 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - राजपुरुषः इस पद में समास है।
समास विग्रह - राज्ञः पुरुषः
सामासिक पद - राजपुरुषः
समास - तत्पुरुष समास (षष्ठी विभक्ति)
स्पष्टीकरण -
लघुसिद्धान्तकौमुदी के ‘उत्तरपदप्रधान तत्पुरुषः' इस सूत्र के अनुसार जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है वह तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास में दोनो पदो का संबंध विभक्ति से दिखाया जाता है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
राजपुरुष इस सामासिक पद में षष्ठी इस सूत्र से राज्ञः पुरुषः यह समास विग्रह होता है।
उदाहरण
- सूर्यस्य उदयः - सूर्योदयः।
- देवानां भाषा - देवभाषा।
- राज्ञः पुत्रः - राजपुत्रः।
अतः यह स्पष्ट होता है कि, राजपुरुष यह तत्पुरुष समास या षष्ठी तत्पुरुष समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
A) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
B) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है।
- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 5:
'अधिहरि' इत्यत्र समासः भवति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'अधिहरि' यहाँ समास है-
स्पष्टीकरण -
जहाँ पूर्वपद अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - ‘अधिहरि’ में अधि उपसर्ग जो कि एक अव्यय है के साथ समास हुआ है, जिसका समास विग्रह होता है - हरौ इति (हरि के विषय में)।
सूत्र:- ‘अव्ययं विभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यृद्धि-अर्थाभाव-अत्यय-असम्प्रति-शब्दप्रादुर्भाव-पश्चात्-यथा-आनुपूर्व-यौगपद्य-सादृश्य-सम्पत्ति-साकल्य-अन्तवचनेषु’ अर्थात् समीप, समृद्धि आदि इन अर्थानुकूल अव्ययों के साथ समास हो तो वह अव्ययीभाव समास’ होता है।
अतः स्पष्ट है कि अधिहरि पद में अव्ययी भाव समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:-‘ प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:-श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः(हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 6:
'पाणिपादम्' इति समस्त पदस्य विग्रहः अस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 6 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'पाणिपादम्' इस समस्त पद का विग्रह है-
स्पष्टीकरण - पाणिपादम् का समास विग्रह होगा - पाणी च पादौ च। यहाँ द्वन्द्व समास है।
पद - पाणिपादम्
समास विग्रह - पाणी च पादौ च
समास - द्वन्द्व समास
'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र से 'पाणिपादम्' में द्वन्द्वः समास होकर 'पाणी च पादौ च तेषां समाहारः' यह विग्रह होता है।
Additional Information
द्वन्द्व समास तीन प्रकार का होता हैं -
- इतरेतर द्वन्द्वः - वैसे तो द्वन्द्व समास युगल अर्थात् जोड़े में ही होता है, किन्तु कहीं-कहीं त्रितय अर्थात् तीन के समूह में भी हो जाता है, जैसे- रामः च कृष्णः च अर्जुनः च -रामकृष्णार्जुनाः। किन्तु इतरेतर द्वन्द्व समास में प्रायः जोड़ों के बीच में समास किया जाता है; समास करने के बाद समस्तपद का लिंग वही होगा, जो उत्तरपद का होगा।
- समाहार द्वन्द्वः - इस समास के दोनों पद प्रधान हों, ऐसा नहीं है। बल्कि समस्तपद से सामुदायिक अर्थ प्रतीत होता है। इसकी अन्य विशेषता यह है कि यह सदा एकवचन में और नपुंसकलिंग होता है। जैसे - शीतं च उष्णं च अनयोः समाहारः - शीतोष्णम्। पाणी च पादौ च तेषां समाहारः
- एकशेष द्वन्द्वः - इस समास में युगल शब्द (जोड़े में शब्द) होते हैं और समास बनाते समय दोनों में से किसी एक पद को ही प्रमुख मानकर उनका समास बनाया जाता है। यदि दो पद हो और द्विवचन में अर्थ निकले तो अन्त में द्विवचन एवं बहुवचन या बहुत संख्या में होने वाले शब्दों में बहुवचन अन्त में होता है। जैसे - माता च पिता च पितरी - पितरौ।
समास Question 7:
'घनश्याम' शब्दे समासविधायक-सूत्रः भवति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 7 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'घनश्याम' शब्द में समास विधायक सूत्र है-
स्पष्टीकरण -
'घनश्याम' शब्द में "उपमानानि सामान्य वचनैः" विधायक सूत्र है।
- जहाँ पर एक पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है। वहाँ पर कर्मधारय समास होता है।
जैसे - घन इव श्याम = घनश्याम (यहाँ पर घन तथा श्याम विशेषण और विशेष्य है।)
- घनश्याम में उपमित कर्मधारय है।
- जिसका सूत्र है - "उपमानानि सामान्य वचनैः"
- अर्थात् उपमा अलंकार को समास रूप में प्रकट करने के लिये इसका प्रयोग होता है।
अतः स्पष्ट है कि "उपमानानि सामान्य वचनैः" सूत्र 'घनश्याम' शब्द का विधायक सूत्र है।
Key Pointsअन्य विकल्प
- सप्तमी शौण्डे - सप्तमी विभक्ति में समाप्त होने वाले पद का शौण्डादिगण में पठित सुबन्तों के साथ विकल्प से तत्पुरुष समास होता है।
- उदाहरण - अक्षशौण्ड: = अक्षेषु शौण्ड:
- नस्तद्धिते - नकारांत के आगे टच् रहने पर ‘टि‘ का लोप हो जाता है।
- यह अव्ययीभाव समास का समासान्त टच् प्रत्यय करने वाला सूत्र है।
- ‘टच्‘ प्रत्यय में 'च्' व 'ट्' की इत्संज्ञा व लोप होने पर ‘अ‘ शेष रहता है।
- उदाहरण - दिशं दिशं प्रति - प्रतिदिश् + अ (टच्) = प्रतिदिशम्
- नदीभिश्च - संख्यावाची शब्दों का, नदी विशेष को बताने वाले शब्दों के साथ समाहार अर्थ में समास होता है।
- उदाहरण - द्वयो: यमुनयो: समाहार: = द्वियमुनम्
समास Question 8:
अव्ययीभाव समास का उदाहरण है-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 8 Detailed Solution
'अनुरथम्' पद में पूर्वपद 'अनु' अव्यय है तथा प्रधान है।
जहाँ पूर्वपद अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे- ‘अधिहरि’ में अधि उपसर्ग जो कि एक अव्यय है के साथ समास हुआ है,जिसका समासविग्रह होता है-हरौ।
सूत्र:- ‘अव्ययं विभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यृद्धि-अर्थाभाव-अत्यय-असम्प्रति-शब्दप्रादुर्भाव-पश्चात्-यथा-आनुपूर्व-यौगपद्य-सादृश्य-सम्पत्ति-साकल्य-अन्तवचनेषु’ अर्थात् समीप, समृद्धि आदि इन अर्थानुकूल अव्ययों के साथ समास हो तो वह अव्ययीभाव समास’ होता है।
उदाहरण-
- विभक्ति-
- अधिहरि = हरौ इति
- समीप-
- उपगङ्गम् = गङ्गाया समीपम्
- समृद्धि-
- सुमद्रम् = मद्राणां समृद्धि
- व्यृद्धि-
- दुर्गवदिकम् = गवदिकानाम् ऋद्धेरभावः
- अर्थाभाव-
- निर्मक्षिकम् = मक्षिकाणाम् अभाव
- अत्यय-
- अतिहिमम् = हिमस्य अत्ययः
- असम्प्रति-
- अतिनिद्रम् = निद्रा सम्प्रति न युज्यते
- शब्दप्रादुर्भाव-
- इतिहरि = हरि शब्दस्य प्रकाशः
- पश्चात्-
- अनुरामम् = रामस्य पश्चात्
- अनुरथम् = रथस्य पश्चात्
- यथा-
- अनुरूपम् = रूपस्य योग्यम्
- आनुपूर्व-
- अनुज्येष्ठम् = ज्येष्ठस्य आनुपूण
- यौगपद्य-
- सहर्षम् = हर्षेण युगपत्
- सादृश्य-
- सवर्णम् = सदृशः वर्णेन
- सम्पत्ति-
- सुक्षत्रम् = क्षत्राणां संपत्तिः
- साकल्य-
- सतृणम् = तृणम् अपि अपरित्यज्य
- अन्तवचन-
- साग्नि = अग्नि पर्यन्तम्
अतः पर्यायो में 'अनुरथम्' अव्ययीभाव समास है यह स्पष्ट होता है।
समास Question 9:
'श्वेताम्बरः' पद में समास है ____
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 9 Detailed Solution
समस्तपद - श्वेताम्बरः
समासविग्रह- श्वेतम् अम्बरं यस्य सः (साधु)
समास - बहुव्रीहि
सूत्र - अनेकमन्यपदार्थे
स्पष्टीकरण -
'अनेकमन्यपदार्थे' सूत्र से अनेक पदों के होते हुए अन्य पद प्रधान होता है, जैसे - 'श्वेताम्बरः' यहाँ पूर्वपद 'श्वेतं' और उत्तरपद 'अम्बरं' है, परन्तु प्रधानता अन्य पद (शिव) यह अन्यपद प्रधान है। जब समस्तपद में अन्यपद प्रधान होता है तब वह समास अन्यपद प्रधान बहुव्रीहि समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
समास Question 10:
"शक्तिम् अनतिक्रम्य" इत्यत्र समस्तपदं सूचयत-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 10 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - "शक्तिम् अनतिक्रम्य" इसका सामासिक पद सूचित करे।
समस्त पद - यथाशक्ति।
समास - अव्ययीभाव समास
स्पष्टीकरण - ‘अनतिक्रम’ अर्थात् ‘मर्यादा का उल्लंघन ना करना।‘ ‘शक्ति’ अर्थात् ‘बल’। ‘योग्यतावीप्सापदार्थानतिवृत्तिसादृश्यानि यथार्थाः।' इस सूत्रानुसार किसी भी पदार्थ की अनति इस अर्थ का बोध कराना है तो ‘यथा’ इस पद का प्रयोग करना चाहिये। यह ‘अव्ययीभाव समास’ कहलाता है।
उदाहरण -
- यथामति - मतिम् अनतिक्रम्य।
- यथारुचि - रुचिम् अनतिक्रम्य।
- यथासामर्थ्य - सामर्थ्यम् अनतिक्रम्य।
अतः यह स्पष्ट होता है कि, "शक्तिम् अनतिक्रम्य" इसका सामासिक पद 'यथाशक्ति' है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
A) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
B) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है।
- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)