पद्यांश MCQ Quiz in हिन्दी - Objective Question with Answer for पद्यांश - मुफ्त [PDF] डाउनलोड करें
Last updated on Mar 9, 2025
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पद्यांश Question 1:
Comprehension:
झाँसी की रानी (कविता) सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता है। दिए गए कविता के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसके तलवारों के वार
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खेलवार
महाराष्ट्र कुल देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
उक्त पद्यांश का सही शीर्षक हो सकता है:
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 1 Detailed Solution
उक्त पद्यांश का सही शीर्षक हो सकता है- झाँसी की रानी।Key Points
- झाँसी की रानी हिंदी भाषा की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी एक कविता है।
- कविता का विषय 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाली, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके द्वारा अंग्रेजों के साथ लड़ा गया युद्ध है।
- वीर रस की यह कविता स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणास्रोत बनी और मंच से पाठ, प्रभात-फेरियों में गाये जाने इत्यादि
- झाँसी की रानी एक वीर रस की कविता है जो उस दौर में लिखी गयी जब हिंदी भाषा के साहित्य में छायावाद मुखर था।
- कविता तत्कालीन बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर लिखी गयी थी
- और इसे भारतीय राष्ट्रवाद की हिंदी साहित्य में सबल अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।
- इसे कवयित्री द्वारा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रति एक श्रद्धांजलि के रूप में भी देखा जाता है।
पद्यांश Question 2:
Comprehension:
नीचे दिए गए काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
'बरस बाद सुधि लीन्हीं' -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
काव्यांश में 'अकुलाईलता' किसके प्रतीक के रूप में है?
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 2 Detailed Solution
काव्यांश में 'अकुलाईलता' के प्रतीक के रूप में है- व्याकुल प्रियतमा।
- काव्यांश के अनुसार-
- बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
- पंक्ति का भाव- कवि कहता है कि जल की बूंदों के लिए व्याकुल लताएं (प्रियतमा) गुस्से से दरवाज़े के पीछे छिपकर मेघ से शिकायत कर रही हैं।
- कि वो कब से प्यासी मेघ (प्रियतम) का इंतज़ार कर रही हैं और उन्हें अब आने का समय मिला है।
Key Points
- व्याकुल-
- आकुल, बेचैन, परेशान, व्यग्र।
- प्रियतमा-
- अत्यंत प्रिय (स्त्री), प्रेमिका, माशूक़ा, पत्नी।
Additional Informationप्रौढ़ा-
- अधिक उम्र वाली स्त्री।
पगडंडी-
- पतला रास्ता, सँकरा मार्ग।
पद्यांश Question 3:
Comprehension:
निर्देश:- दिए गए काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
यह न स्वत्व का त्याग, दान तो जीवन का झरना है
रखना उसको रोक मृत्यु के पहले ही मरना है।
किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते है?
गिरने से उसको सँभाल क्यों रोक नहीं लेते है?
ऋतु के बाद फलों का रुकना डालों का सड़ना है
मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है
देते तरु इसलिए कि रेशों में ना कीट समाएँ
रहें डाालियाँ स्वस्थ्य और फिर नए-नए फल आएँ
पेड़ों से फलों का उतरना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इससे _________
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 3 Detailed Solution
पेड़ों से फलों का उतरना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इससे पेड़ों की डालों को हानि नहीं होती।
Key Points
- कविता के आधार पर, पेड़ों से फलों का उतरना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इससे "पेड़ों की डालों को हानि नहीं होती।"
Additional Informationव्याख्या:
- कविता में कवि ने वृक्ष के फलों को उसकी डालों से गिरने की अनिवार्यता का चित्रण किया है।
- कवि कहते हैं कि फलों का उतरना अनिवार्य है क्योंकि यदि वे डालों पर ही रहते हैं तो वे सड़ जाएंगे और डालों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- इसके अलावा, फलों का उतरना डालों के लिए अच्छा होता है क्योंकि इससे वे नए फलों को उत्पन्न कर सकते हैं।
- इसलिए, यह कविता हमें यह सिखाती है कि दान और साझा करने में ही असली उत्कृष्टता और वृद्धि है, चाहे वह प्रकृति हो या मानव समाज।
- जैसे कि वृक्ष अपने फलों को देकर अपनी वृद्धि और उत्पादकता को बनाए रखता है, वैसे ही मानव समाज भी दान और साझेदारी के माध्यम से अपने स्वस्थ्य और समृद्धि को बनाए रख सकता है।
पद्यांश Question 4:
Comprehension:
दिये गये काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्न के लिए उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रहीं लू-लपट दिशाएँ
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल !
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा ?
साक्षी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल।
कलम आज उनकी जय बोल !
कविता में 'उनकी' सर्वनाम का प्रयोग किनके लिए किया गया है?
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 4 Detailed Solution
कविता में 'वीरों की' सर्वनाम का प्रयोग किनके लिए किया गया है।
- वीरों की - यह सही विकल्प है। कविता में 'उनकी' का प्रयोग वीरों के लिए किया गया है जो अपनी शौर्यगाथा के लिए प्रसिद्ध हैं।
- यहां 'लाल शिखाएँ', 'सिंहनाद', 'धरती की डोलना' आदि जैसे शब्दों का प्रयोग वीरता और बहादुरी को दर्शाने के लिए किया गया है।
Key Points
अन्य विकल्पों का विश्लेषण:
- सिंहों की - यहाँ 'सिंहनाद' शब्द केवल वीरता और बहादुरी की तुलना करने के लिए सिंह का प्रयोग हुआ है, 'उनकी' सिंहों के लिए नहीं है।
- लेखकों की - कविता में 'कलम' का उल्लेख है, लेकिन यह वीरों की जय-जयकार करने के लिए है, न कि लेखकों की प्रशंसा के लिए।
- दिशाओं की - 'दिशाएं' यहाँ संदर्भित हैं, लेकिन वे केवल वीरों की वीरता का वर्णन करने का एक तरीका हैं, 'उनकी' दिशाओं के लिए नहीं है।
पद्यांश Question 5:
मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लोने को दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वस बचाने को भगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाए दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम हम वहीं खुशी से खाएँगे, परिजन पर असि न उठाएँगे दुर्योधन वह भी दे न सका, आशीष समाज का ले न सका उलटे हरि को बाँधने चला, जो था असाहय साधने चला जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।
'भगवान' का पर्यायवाची है:
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 5 Detailed Solution
'भगवान' का पर्यायवाची है: उपर्युक्त सभी
- प्रभु, परमेश्वर, ईश्वर, परमात्मा - भगवान के पर्याय है।
Key Points
शब्द |
परिभाषा |
उदाहरण |
पर्यायवाची |
एक ही अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जो बनावट में भले ही अलग हों, पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहलाते हैं। |
आग-अनल, पावक, दहन। |
Additional Information कुछ महत्वपूर्ण पर्यायवाची शब्द -
शब्द | पर्यायवाची शब्द |
नदी | सरिता, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, आपगा, कूलंकषा। |
अंबर | आकाश, आसमान, गगन, फलक, नभ। |
इंद्र | सुरपति, देवराज, मघवा, देवेश, वासव, सुरेश। |
कनक | कंचन, सुवर्ण, हिरण्य, हेम, हाटक, सोना, स्वर्ण। |
कपड़ा | लिबास, वसन, चीर, चेल, परिधान, पट, पोशाक, वस्त्र। |
बादल | मेघ, जलधर, अंबुद, वारिद, पयोद, नीरद, घन। |
पद्यांश Question 6:
Comprehension:
हवा चले अनुकूल तो नावें नौसिखिए भी खे लेते हैं,
सहज डगर पर लँगड़े भी चल बैसाखी से लेते हैं।
मिट जाते जो दीप स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को
नमन उन्हें है, जो लौटा लाते हैं गई बहारों को ।
फैलाकर के हाथ किसी के सम्मुख झुकना आसाँ है,
बहती नदिया से पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है,
नित्य खोदकर नए कुऍं जो सबकी प्यास बुझाते है,
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
_______ में प्रथम और तृतीय चरणों में तेरह एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में ग्यारह ग्यारह मात्राएँ होती हैं।
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 6 Detailed Solution
दोहा छंद में प्रथम और तृतीय चरणों में तेरह एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में ग्यारह ग्यारह मात्राएँ होती हैं।
Key Pointsदोहा छंद-
- यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है।
- इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
- इसमें चरण के अंत में लघु (।) होना जरूरी होता है।
- जैसे:-
- राम नाम मणि दीप धरि, जीह देहरी द्वार ।
- S I S I I I S I I I S I S I S S I = 13 + 11 = 24
- तुलसी भीतर बाहिरहु , जो चाहसि उजियार ।।
Additional Informationचौपाई:-
- इस चौपाई में चार चरण होते हैं,
- प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।
- चरण के अन्त में जगण (I I S) अथवा तगण (S I I) नहीं होना चाहिए,
- अन्तिम दो वर्ण गुरु-लघु (S I) भी नहीं होने चाहिए।
कुण्डलिया:-
- दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है।
- इस छंद के 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में 24 मात्राएँ होती है।
- कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है।
- दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
हरिगीतिका-
- हरिगीतिका चार चरणों वाला एक सम मात्रिक छंद है।
- इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं।
- अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है।
पद्यांश Question 7:
Comprehension:
हवा चले अनुकूल तो नावें नौसिखिए भी खे लेते हैं,
सहज डगर पर लँगड़े भी चल बैसाखी से लेते हैं।
मिट जाते जो दीप स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को
नमन उन्हें है, जो लौटा लाते हैं गई बहारों को ।
फैलाकर के हाथ किसी के सम्मुख झुकना आसाँ है,
बहती नदिया से पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है,
नित्य खोदकर नए कुऍं जो सबकी प्यास बुझाते है,
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
उपर्युक्त पद्यांश में कवि उन्हें नमन कर रहा है जो _________
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 7 Detailed Solution
उपर्युक्त पद्यांश में कवि उन्हें नमन कर रहा है जो दूसरों को प्रेरणा देकर मरते है।
Key Points
- पद्यांश में कवि उन लोगों को नमन कर रहा है, जो दूसरों की प्रेरणा बनते हैं और मरते समय भी दूसरों की प्रेरणा बने रहते हैं।
Additional Information
- नावें चलाते है। - पद्यांश के अनुसार यह विकल्प प्रश्न की सही व्याख्या नहीं कर रहा है।
- जो लाख दिए जलाते है। - पद्यांश के अनुसार यह विकल्प प्रश्न की सही व्याख्या नहीं कर रहा है।
- जो लोग सदियों तक प्यास बुझाते है - पद्यांश के अनुसार यह विकल्प प्रश्न की सही व्याख्या नहीं कर रहा है।
पद्यांश Question 8:
Comprehension:
नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए
इतिहास के पन्नों में, गूंजता एक गान है,
अधिकारों की लड़ाई में, जन-जन की पहचान है।
सदियों के विरोध में, आवाज़ उठाई गई,
न्याय की खोज में, विचारों की मशाल जलाई गई।
शिक्षा की रोशनी ने, अंधेरों को दूर भगाया,
समाज के हर वर्ग ने, एक नया सवेरा पाया।
ज्ञान और विवेक से, मार्ग आयामित हुआ,
उन्नति और प्रगति का, सफर शुरू हुआ।
'ज्ञान और विवेक से' - इस वाक्यांश में 'से' किस कारक का बोध कराता है?
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 8 Detailed Solution
सही उत्तर "आपादान कारक" है।
Key Pointsपद्यांश के अनुसार ,
- सही उत्तर "आपादान कारक" है क्योंकि 'से' यहाँ आधार या स्रोत का बोध करा रहा है, जिससे कुछ प्राप्त होता है।
Additional Information अन्य विकल्प :
- कर्ता कारक क्रिया के करने वाले या सुझाव देने वाले को दर्शाता है।
- कर्म कारक क्रिया के पूरा होने पर जिस पर प्रभाव पड़ता है, उसे दर्शाता है।
- सम्प्रदान कारक दान, समर्पण, या किसी चीज़ के स्थानांतरण का बोध कराता है।
पद्यांश Question 9:
Comprehension:
दी गई कविता की पंक्तियों को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए।
कट गया है शीश पर
शीश है झुका नहीं
राही उसी का नाम है।
जो राह में रुका नहीं
एक दिन प्रकाश होता है।
कितना भी अंधकार हो
सत्य की विजय सदा
असत्य की हार हो।
सच्चाई साथ में रहे
कैसा भी अपना अंत हो
सत्य की विजय सदा
असत्य की हार हो।
'अंधकार ' ________ का प्रतीक नहीं है।
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 9 Detailed Solution
पद्यांश के अनुसार- 'अंधकार 'समाधान का प्रतीक नहीं है।
Key Points "समाधान" का सही उत्तर होने का कारण निम्नलिखित बिंदुओं में समझाया जा सकता है:
अंधकार के प्रतीकात्मक अर्थ:
- आमतौर पर, काव्य या साहित्य में, अंधकार (अधकार) को बुराई, निराशा, या चुनौतियों के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
- ये प्रतीकात्मक अर्थ अंधेरे के सामाजिक-सांस्कृतिक नकारात्मक संवेदनाओं से जुड़े हुए हैं।
समाधान का अर्थ:
- "समाधान" का अर्थ होता है हल या उत्तर, जो किसी समस्या का निराकरण प्रस्तुत करता है।
- समाधान एक सकारात्मक घटक है जो समस्याओं या चुनौतियों को हल करने से जुड़ा होता है, इसीलिए यह अंधकार का प्रतीक नहीं हो सकता।
अंधकार और समस्याओं का संबंध:
- अंधकार, बुराई, निराशा, या चुनौतियों को व्यक्त कर सकता है, क्योंकि ये सभी नकारात्मक या अवांछित परिस्थितियाँ हैं।
- इसके विपरीत, समाधान इन समस्याओं को दूर करने का माध्यम है, जो अंधकार के हटाने या उजाले की ओर ले जाने का संकेत देता है।
साहित्यिक और वास्तविकता का प्रस्तुतीकरण:
- साहित्य में अंधकार और प्रकाश का उपयोग अक्सर विपरीत संकेतों के रूप में होता है,
- जहाँ प्रकाश ज्ञान, आशा, और समाधान का प्रतीक होता है, वहीं अंधकार बुराई, निराशा, और चुनौतियों को दर्शाता है।
Additional Information पद्यांश में प्रमुख शब्दों के अर्थ
- शीश - सिर या मस्तक।
- राही - यात्री या रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति।
- प्रकाश - रोशनी या उजाला।
- अंधकार - अंधेरा या रोशनी का अभाव।
- सत्य - सच्चाई या वास्तविकता।
- असत्य - झूठ या गलत।
- विजय - जीत या सफलता।
- हार - पराजय या हारने की स्थिति।
- सच्चाई - सत्यता या सच्चा होना।
- अंत - समाप्ति या अवसान।
पद्यांश Question 10:
Comprehension:
नीचे दिए गए पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्न के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
द्वीप हैं हम ! यह नहीं है शाप। यह अपनी नियति है।
हम नदी के पुत्र हैं। बैठे नदी की क्रोड में।
वह बृहत् भूखंड से हमको मिलाती है।
और वह भूखंड अपना पितर है।
नदी तुम बहती चलो।
भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है,
माँजती, संस्कार देती चलो। यदि ऐसा कभी हो -
तुम्हारे आह्लाद से या दूसरों के,
किसी स्वैराचार से, अतिचार से,
तुम बढ़ो, प्लावन तुम्हारा घरघराता उठे
तो हमें स्वीकार है वह भी उसी में रेत होकर
फिर छनेंगे हम। जमेंगे हम कहीं फिर पैर टेकेंगे।
इस काव्यांश में द्वीप किसका प्रतीक है?
Answer (Detailed Solution Below)
पद्यांश Question 10 Detailed Solution
इस काव्यांश में द्वीप का प्रतीक है- व्यक्ति
- पद्यांश के अनुसार-
- इसमें नदी, द्वीप तथा भूखंड को प्रतीक के रूप में चुना गया है।
- इसमें व्यक्ति, समाज और परंपरा के आपसी संबंधों को सर्वथा नवीन दृष्टि से देखा गया है।
- यहाँ द्वीप, नदी और भूखंड को क्रमशः व्यक्ति, परंपरा और समाज के प्रतीक के रूप में चुना गया है।
Key Points
- व्यक्ति-
- जन, मनुष्य, व्यष्टि, आदमी, इंसान, शख़्स।
Additional Information
समाज | समूह, संघ, गरोह, दल, सभा। |
पिता | जनक, जनपिता, बाप, बापू, जन्मदाता, पापा। |
परंपरा | पद्धति, रीति, दस्तूर, नियम, रिवाज, चलन, प्रथा। |