शिक्षण विधियाँ MCQ Quiz in मराठी - Objective Question with Answer for शिक्षण विधियाँ - मोफत PDF डाउनलोड करा
Last updated on Mar 15, 2025
Latest शिक्षण विधियाँ MCQ Objective Questions
Top शिक्षण विधियाँ MCQ Objective Questions
शिक्षण विधियाँ Question 1:
व्याकरण-अनुवाद विधेः अपरं नामम् अस्ति –
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 1 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - व्याकरण-अनुवाद विधि का अन्य नाम है -
स्पष्टीकरण -
अनुवाद शिक्षण के प्रवर्तक 'श्री रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर' थे, अतः इसे 'भण्डारकर विधि' भी कहते है। इस विधि में संस्कृत व्याकरण का उदाहरण सहित व्याख्या संस्कृत से अन्य भाषा में तथा अन्य भाषा से संस्कृत में किया जाता है। जिससे संस्कृत शब्दकोश का ज्ञान बढ़ता है। इस विधि ने मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का अनुसरण किया है। इसका प्रयोग स्वयंपाठी छात्र को तथा उच्चस्तर कक्षाओं में हो सकता है जिसमें संस्कृत लेखन, भाषण, तथा अभिव्यक्ति होती है।
अनुवाद शिक्षण का उद्देश्य -
- संज्ञानात्मक कौशल के रूप में अनुवाद के अभ्यास से भाषा अधिगम के दो कौशलों बोधन और अभिव्यक्ति को पुष्ट किया जाता है।
- विविध भाषा के शब्दों का ज्ञान होता है तथा शब्दकोश में वृद्धि होती है।
- छात्रों का शब्द भण्डार बढता है।
- संस्कृत के पुस्तकों को छात्र पढ सकते हैं और समझ सकते हैं।
- छात्रों में संस्कृत लेखन की योग्यता उत्पन्न होती है।
अतः स्पष्ट होता है 'अनुवाद शिक्षण' को 'भण्डारकर विधि' भी कहते है।
Additional Information
कुछ अन्य संस्कृत विधियाँ:-
- मौखिक विधि - इसमें वैदिक मन्त्रों के उच्चारण का शिक्षण दिया जाता था इससे छात्रों का उच्चारण शुद्ध होता था और अभिव्यक्ति का सशक्तिकरण होता था।
- पारायण विधि - इसमें वैदिक मन्त्रों का सस्वर और योग्य क्रम से पारायण सिखाया जाता है। पाठ की कठिनता के अनुसार पठन की संख्या निश्चित होती है।
- वाद-विवाद विधि - पठन के साथ ही अवबोध के विकास के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता था। पाणिनि ने इसे भाषा-व्याख्या प्रदर्शन कहा है। वेदोंसे यम-यमी संवाद जैसी कथाए दार्शनिक वादविवाद का एक उदाहरण है। इस विधि से छात्रों में भाव शक्ति का विकास तथा स्वाध्याय के प्रति रूचि निर्माण होती है।
- प्रश्नोत्तर विधि - शिक्षक द्वारा प्रत्येक छात्र को प्रश्न पूछे जाते थे कभी उत्तर विस्तृत होते थे कभी प्रश्नों की माला भी होती थी। इससे छात्रों में निरिक्षण शक्ति का विकास होता है।
- सूत्र विधि - इनमे व्याकरण तथा दर्शन शिक्षण सिखाने के लिए नियमों का कंठस्थीकरण किया जाता है। इससे क्लिष्ट विषय का अवगमन होता है।
- कथाकथन विधि - कथा सुनना भी एक शिक्षण होता है। कथा-कथन विधि के छात्रों में रूचि निर्माण होती है तथा उनमे निति का विकास होता है। बालकों में सुनकर अर्थ ग्रहण करने की क्षमता का विकास भी होता है।
- व्याख्या विधि - छात्रों के शंका के समाधान के लिए व्याख्या का प्रयोग किया जाता है। 'पदच्छेदः पदार्थोक्ति विग्रहो वाक्ययोजना, आक्षेपस्य समाधानं व्याख्यानं पंचलक्षणम् ।।' अर्थात् 'पदो का विच्छेद करना, पदो का अर्थ को कहना, विग्रह करना, अन्वय करना, आक्षेप का समाधान करना, ये पाँच लक्षण व्याख्या के है।'
- कक्षा नायक विधि - गुरु के अनुपस्थिति में या गुरु के सहायता के लिए कक्षा से प्रतिभाशाली छात्रों के कक्षा नायक करते है। इन्हें मेधावी कहते थे। इससे आत्मविश्वास का विकास होता हिया।
- व्याकरण विधि - भाषा के यथोचित बोधन के लिए व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक होता है। वेदाध्ययन के पठन के लिए व्याकरण जानना जरुरी होता है। पतंजलि के अनुसार 'रक्षार्थं वेदानाम अध्येयं व्याकरणम्' अर्थात् वेदोंके रक्षण के लिए व्याकरण का अध्ययन करना चाहिए।
शिक्षण विधियाँ Question 2:
संस्कृतशिक्षणे अन्वयस्य द्वितीयः भेदः वर्तते
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 2 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी अनुवाद - संस्कृत शिक्षण में अन्वय का दूसरा भेद है -
स्पष्टीकरण -
काव्य या पद्य - जब किसी कहानी या भाव को कलात्मक (छंद, अलंकार आदि का प्रयोग करके) रूप से अभिव्यक्त किया जाये तो वह कविता या पद्य रचना कहलाती है। इसका शाब्दिक अर्थ कवि की कृति है। काव्य का एक भावनात्मक अर्थ होता है, जिसे सभी विद्यार्थियों को पढ़ना चाहिए जिससे उनके भावनात्मक अभिवृत्ति और सृजनशीलता का विकास हो सके।
Key Points
कविता / पद्य / काव्य शिक्षण प्रणाली: कविता में रूचि बढ़ाने के लिए शिक्षको को प्रणालियों का प्रयोग करना आवश्यक होता है, उनमे दों अन्वय विधियाँ हैं- प्रथम दण्डान्वय और द्वितीय खण्डान्वय।
- दण्डान्वय:- दण्डान्वय विधि के अंतर्गत प्रथम विशेषण पद को खोजा जाता है, उसके बाद विशेष्य पद को जोड़ा जाता है, एवं उसके बाद विविध पद प्रत्ययों से बने पद साथ में जोड़े जाते है उसे दण्डान्वय कहा जाता है। जब शिक्षक व्याकरण से सम्बंधित प्रश्न पूछता है तब वह यहाँ विधि होती है।
- खण्डान्वय:- दण्डान्वय विधि के व्याकरणात्मक प्रश्नों के बाद जब साहित्य से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है तब खण्डान्वय विधि का प्रयोग होता है। यह विधि मीमांसा शास्त्र पर आधारित है, इस शास्त्र के अंतर्गत वाक्य को ग्रहण करने के लिए 'आकांक्षा, योग्यता, सन्निधि' इत्यादि तत्वों की आवश्यकता ती है।
अतः स्पष्ट होता है, 'खण्डान्वय' यह संस्कृत अन्वय विधि का द्वितीय भेद अथवा प्रकार है।
शिक्षण विधियाँ Question 3:
कस्यां पद्धतौ शिक्षणं सर्वं मौखिकमासीत्?
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 3 Detailed Solution
प्रश्न का अनुवाद - किस शिक्षण पद्धति में सम्पूर्ण शिक्षण मौखिक होता है?
स्पष्टीकरण - संस्कृत प्राचीन भाषा है तथा प्राचीन काल से इसे सिखाने की विविध विधियों का उपयोग होता आ रहा है। अतः काल क्रम से संस्कृत-शिक्षण-विधियों को इन वर्गों में रखा जा सकता है-
- प्राचीन - प्राचीन काल में भारत में गुरु-शिष्य परम्परा प्रचलित थी जिसमें गुरुकुल में पाठशाला और व्याखान विधियों से अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। गुरु की एकमात्र प्रधानता थी। इसमें रटने पर अधिक बल दिया जाता था। इसमें निगमन विधि, सूत्र विधि, पारायण विधि, पाठशाला विधि और व्याख्यान विधि का समावेश होता है।
- परम्परा से पालन किए जाने के कारण इन्हें परम्परागत प्रणाली भी कहते हैं।
- प्राचीन काल के शिक्षक को आचार्य, उपाध्याय, चरक और गुरु द्वारा जाना जाता था और नियोजित अधिगम विधियों में कहानी कहना, याद करना, प्रायोगिक विधियां, महत्वपूर्ण विश्लेषण, सेमिनार और प्रश्न और उत्तर शामिल थे।
- प्राचीन भारतीय शिक्षा एक किताब के माध्यम के बिना लंबे समय तक मौखिक पाठ के माध्यम से प्रदान की जाती थी।
- नवीन - रटने से अधिक समझने पर बल दिया जाता है। इसमें शिक्षक और छात्र दोनों की मुख्य भूमिका शिक्षण प्रक्रिया में होती है। इसके अन्तर्गत आगमन विधि, समग्र-शारीरिक-प्रतिक्रिया-विधि, निमज्जनविधि आदि का समावेश किया जाता है जिसमें भाषा को सरल और मनोरञ्जक रूप से पढाया जा सके।
- नवीनतम - इसके अन्तर्गत छात्र को करके सिखने और समझने का अवसर दिया जाता है। इस विधि से प्राप्त ज्ञान अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होता है। इसमें अनुसन्धान-विधि, प्रयोगशाला-विधि, क्रीडा आदि विधियों का समावेश किया जाता है।
अतः स्पष्ट है कि परंपरागत पद्धति शिक्षण एक प्राचीन पद्धति है, जिसमें सम्पूर्ण शिक्षण मौखिक होता था। शिष्य गुरुमुख से सुनकर मौखिक अभ्यास करते थे।
शिक्षण विधियाँ Question 4:
पद्यशिक्षणस्य विधिः नास्ति
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 4 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - पद्य शिक्षण की विधि नहीं है -
स्पष्टीकरण -
- निगमनविधि पद्य शिक्षण की विधि नहीं है I इस विधि में छात्रों के समक्ष नियम प्रस्तुत करके उन नियमों को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जाता है।
निगमनविधि -
- निगमनविधि व्याकरण शिक्षण की विधि है I
- प्रवर्तक - पतञ्जलि
- नियमबोधन - अज्ञात से ज्ञात की ओर
- नियमस्पष्टीकरण - कठिन से सरल की ओर
- नियमपरीक्षण - सूक्ष्म से स्थूल की ओर
- नियम सत्यापन - नियम से उदाहरण की ओर
अतः स्पष्ट है कि 'निगमनविधि' पद्य शिक्षण की विधि नहीं है I
Additional Information
पद्य शिक्षण
- पद्य का सर्वप्रथम दर्शन ऋग्वेद में मिलता है I (पद्यात्मको ऋग्वेद:)
- जो छन्द से युक्त विद्या हो पद्य कहलाती है I
- पद्य शिक्षण का वाचन-सस्वर वाचन होता है।
- पद्य शिक्षण में प्रश्नों का प्रकार - भावबोध या भाव विश्लेषण के रूप में होता है।
पद्य शिक्षण की प्रमुख विधियां
1. गीतनाट्यविधिः -
- प्राथमिक स्तर के लिये उत्तम है I
- इसमें पद्यांश को लयबद्ध के माध्यम से पढ़ाया जाता हैI
2.भाषानुवाद विधि -
- अर्थबोधन विधि
- पद्यांश के शब्दों का अर्थ किया जाता हैI
3.भाष्यविधिः -
- उपनाम - व्यास विधि
- उच्च स्तर के लिये उत्तम है I
- इसमें प्रत्येक पद को भाषा एवं भाव की दृष्टि से परखना होता हैI
4. व्याख्या विधि -
- शङ्का समाधान के लिये काम में आती हैI
- इसमें एक-एक शब्द की व्याख्या की जाती हैI
5.तुलना विधि -
- एक श्लोक के भाव वाले समान श्लोक के साथ तुलना की जाती हैI
6. टीकाविधिः -
- उच्च स्तर के लिये उत्तम है I
- इसमें शब्द की व्युत्पत्ति को समन्वित करके पढ़ाया जाता हैI
7. समीक्षा विधि -
- इस विधि में गुण-दोषों का विवेचन किया जाता है I
8. दण्डान्वय विधि -
- दण्ड का अर्थ होता है - वाक्य
- सम्पूर्ण श्लोक को अर्थपूर्ण वाक्य के रूप में व्यवस्थित करना दण्डान्वय विधि हैI जिससे श्लोक के अर्थ को सरलता से समझा जा सके।
शिक्षण विधियाँ Question 5:
संस्कृतभाषाशिक्षणे अयं विधिः उत्तम:
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 5 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - संस्कृत भाषा शिक्षण में कौनसी विधि उत्तम है?
स्पष्टीकरण - प्रत्यक्ष विधि को संस्कृत भाषा शिक्षण में उत्तम विधि मानी जाती है।
Important Points
शिक्षण विधियाँ -
जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। शिक्षण विधि' पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। अत: संस्कृत भाषा शिक्षण में भी अनेक विधियों का समावेश किया जाता है उनमे से एक सर्वोत्तम विधि है प्रत्यक्ष विधि। प्रत्यक्ष विधि यह एक आधुनिक विधि मानी जाती है। क्योकि-
1835 ई. के पश्चात लार्ड मैकाले द्वारा दी गई शिक्षा पद्धति के बाद संस्कृत शिक्षण में जो विधियाँ अपनाई गई वह नवीन या आधुनिक शिक्षण विधियां है तथा इससे पहले कि सभी शिक्षण विधियां प्राचीन शिक्षण विधियां है।
प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)- यह छात्रों की सक्रिय भागीदारी को सुलभ करता है। इसमें बोलने के कौशल पर ध्यान केंद्रित करते है और लक्ष्य भाषा को सीधे मातृभाषा में अनुवाद किए बिना सीखने पर जोर देते है। प्रो. वी. पी. बोकील ने प्रत्यक्ष विधि को प्रतिपादित किया है।
- प्रत्यक्ष विधि को ही सुगम विधि/ प्राकृतिक विधि / निर्बाध विधि भी कहते हैं।
- प्रत्यक्ष में प्र + अक्ष् ्धातु है जिसका अर्थ गौर से देखना होता है, अत: प्रत्यक्ष विधि का अर्थ- वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप मे दिखाना है।
- तात्पर्य यह है कि वस्तुओं व जीव जन्तुओं का चित्र अथवा प्रतिमान दिखा कर क्रियाओं को करके दिखाना मतलबा प्रत्यक्ष विधि।
- इस पद्धति का मुख्य सिद्धांत यह है कि जिस प्रकार बालक अनुकरण द्वारा मातृभाषा सीख लेता है उसी प्रकार बालक श्रवण और अनुकरण द्वारा दूसरी भाषा भी सीख सकता है ।
- इस विधि मे सीमित शब्दावली का ही ज्ञान दिया जाता है।
- इस विधि मे श्रवण तथा पठन कौशल पर जोर दिया जाता है। अत: पढना और लिखना कौशल गौण हो जाते है।
- इस विधि मे उन्ही शब्दों का ज्ञान दिया जा सकता है जो मूर्त रूप म उपस्थित हों तथा उन्हे कक्षा कक्ष मे लाया जा सके।
- प्रत्यक्ष विधि' भाषा शिक्षण की वह विधि है जिसमें लक्ष्य भाषा सीखते समय मातृभाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- इस विधि को प्राकृतिक और व्याकरण विरोधी विधि के रूप में भी जाना जाता है।
- प्रत्यक्ष विधि व्यक्तित्व के आकलन में मदद करती है और उन बाधाओं को खत्म करने में मदद करती है जो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन करने में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- यह व्यवहार कौशल का विकास करता है।
अतः स्पष्ट है कि संस्कृत भाषा शिक्षण की उत्तम विधि प्रत्यक्ष विधि मानी जाती है।
Additional Information
अन्य विकल्पों का विश्लेषण -
- प्रायोजनाविधिः - प्रायोजना विधि शिक्षा दर्शन की एक प्रमुख विचारधारा प्रयोजनवाद पर आधारित है। इसमे बालक अपने अनुभव के आधार पर सीखते हैं ऐसे कहा गया है।
- व्याकरणानुवादविधिः - व्याकरण अनुवाद विधि में द्वितीय भाषा का व्याकरण पहले पढ़ाया जाता है। मातृभाषा के अवतरणों का द्वितीय भाषा में अनुवाद कराया जाता है।
- अव्याकृतिविधिः - इसमे भाषा के साथ-साथ व्याकरण का भी ज्ञान दिया जाता है तथा अभ्यास प्र भी बाला दिया जाता है।
कोई भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश यह होता है की उस भाषा को उसी भाषा में सीखना जो प्रत्यक्ष विधि में किया जाता है। अतः स्पष्ट है कि संस्कृत भाषा शिक्षण की उत्तम विधि प्रत्यक्ष विधि मानी जाती है।
शिक्षण विधियाँ Question 6:
कण्ठस्था तु या विद्या" कस्याः शिक्षण पद्धत्याः मूलस्त्रोतोऽस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 6 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - कण्ठस्था तु या विद्या" यह किस शिक्षण पद्धति का मूल स्त्रोत है?
स्पष्टीकरण - "कण्ठस्था तु या विद्या" यह पाठशाला शिक्षण पद्धति का मूल स्त्रोत है।
Important Points
जिस ढंग से शिक्षक- शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि/ शिक्षण पद्धति कहते हैं।
पाठशाला शिक्षण पद्धति / गुरुकुल पद्धति -
- पाठशाला शिक्षण पद्धति प्राचीन विधि मानी जाती है।
- इसे परंपरागत विधि, पंडित प्रणाली या व्यक्तिगत शिक्षण प्रणाली भी कहते हैं। इसका प्रमुख उददेश्य है ज्ञान को ह्दयंगम करना।
- इसमे गुरुकुल में छात्र इकट्ठे होते थे और अपने गुरु से वेद सीखते थे।
- गुरुकुल का मुख्य उदेश्शय ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता था।
- इस विधि में श्रवण, मनन और निधिध्यासान के द्वारा कंठस्थीकरण पर जोर दिया जाता था।
- इस विधि की कमियां यही हैं कि यह शिक्षक आधारित थी। इसमें छात्र पर ध्यान कम दिया जाता था और स्मरण व रटाने पर जोर दिया जाता था।
- इस विधि में शिक्षण के चारों कौशलों में से केवल दो कौशल श्रवण और मनन यानि पठन पर ही जोर दिया जाता था। यह मनोवैज्ञानिक विधि नहीं है।
- यहां व्याकरण अधिक मात्रा में सीखाया जाता था और मुख्यत: मौखिक शिक्षा पर अधिक जोर था।
अत:, "कण्ठस्था तु या विद्या" अर्थात् 'जिसका कण्ठस्थीकरण किया गया है वह विद्या है' यह पाठशाला शिक्षण पद्धति का मूल स्त्रोत है।
Hint
1835 ई. के पश्चात लार्ड मैकाले द्वारा दी गई शिक्षा पद्धति के बाद संस्कृत शिक्षण में जो विधियां अपनाई गई वह नवीन या आधुनिक शिक्षण विधियां है तथा इससे पहले कि सभी शिक्षण विधिया प्राचीन शिक्षण विधियां हैं। अत: पाठशाला शिक्षण पद्धति प्राचीन विधि मानी जाती है। तथा पाठ्यपुस्तक पद्धति, प्रत्यक्ष पद्धति और समन्वय पद्धति आधुनिक शिक्षण विधियां मानी जाती है।
पाठ्यपुस्तक पद्धति -
- समर्थक : डॉ. वेस्ट महोदय।
- इसमें क्रमशः वर्णमाला, छोडे शब्दों, वाक्यों और अनुच्छेदों का ज्ञान करवाया जाता है। वाचन कौशल पर अधिक बल ।
- शिक्षण का केंद्र पाठ्यपुस्तक को माना गया है।
- व्याकरण का ज्ञान प्रसंग आने पर ही दिया जाता है।
- इन पाठ्य पुस्तकों का उद्देश्य है कि इन्हें पढ़कर छात्र शिक्षक की सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर सकें।
- समर्थक : गुइन महोदय।
- प्रत्यक्ष विधि का अर्थ होता है - वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप मे दिखाना। तात्पर्य यह है कि वस्तुओं व जीव जन्तुओं का चित्र अथवा प्रतिमान दिखा कर क्रियाओं को करके दिखाना।
- प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी
- इस विधि मे तीन बातों का ध्यान रखा जाता है।
मातृभाषा का प्रयोग वर्जित है।
मौखिक कार्य को प्रधानता दी जानी चाहिए
वस्तु ओर शब्द के मध्य सीमा सम्बंध स्थापित कर पढ़ाया जाता है।
समन्वय पद्धति -
- समर्थक : हरबर्ट महोदय।
- समन्वय का अर्थ दो तत्वों का एक साथ चलना।
- इस विधि में सभी विधाओं का अध्ययन एक साथ कराया जाता है। इसलिए इसे समवाय विधि कहते है।
- इस विधि में सभी विधाओं का अध्ययन एक साथ कराया जाता है। इसलिए इसे समवाय विधि कहते है
- इस विधि में मौखिक या लिखित कार्य कराते समय गद्य शिक्षण कराते समय या रचना शिक्षण कराते समय प्रसंगिक रूप से व्याकरण के नियमों की जानकारी की जाती है।
शिक्षण विधियाँ Question 7:
गेस्टाल्टमनोविज्ञानेन कस्य आविर्भावः अभवत्?
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 7 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - गेस्टाल्ट मनोविज्ञान से किस का आविर्भाव हुआ -
स्पष्टीकरण - गेस्टाल्ट मनोविज्ञान से पाठयोजना का आविर्भाव (उत्पत्ति) हुआ।
Key Pointsपाठयोजना -
- शिक्षण अभ्यास के दौरान छात्राध्यापकों के लिए पाठ योजना का निर्माण करना आवश्यक होता है।
- पाठ योजना के द्वारा कक्षा, विषय, प्रकरण, कालांश आदि सुनिश्चित कर लिये जाते हैं।
- निश्चित अवधि के अंतर्गत विषय-वस्तु से संबंधित प्रकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है।
- इसके निर्माण से समय, श्रम की बचत होती है तथा शिक्षक को आत्म मूल्यांकन का अवसर मिलता है।
- पाठ योजना के द्वारा शिक्षक विषय के प्रकरण से संबंधित मुख्य बिंदुओं को कक्षा शिक्षण का आधार बनाता है इससे शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सुचारू रूप से संचालित होती है।
पाठ योजना की उत्पत्ति -
- गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के सिद्धांत के आधार पर पाठ योजना का विकास हुआ है।
- अधिगम के अंतर्गत गेस्टाल्ट अधिगम सिद्धांत का प्रयोग अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
- इसमें प्रत्यक्षीकरण में संपूर्ण की अनुभूति इकाई की सहायता से की जाती है।
- छात्र संपूर्ण को समझने के लिये इकाई की मदद लेता है और सम्पर्ण का संप्रेषण इकाई से किया जाता है।
अतः स्पष्ट है कि गेस्टाल्ट मनोविज्ञान से पाठयोजना का आविर्भाव (उत्पत्ति) हुआ।
Additional Information
- पाठ नियोजन की जिस प्रक्रिया का हम सद्यापरास्थिति में अनुसरण करते हैं वह फ्रेडरिक हर्बर्ट द्वारा शुरू की गई थी। अतः पाठ योजना के चरणों को हर्बार्टियन चरणों के रूप में जाना जाता है।
शिक्षण विधियाँ Question 8:
काव्यशिक्षणस्य उद्देश्यम् अस्ति -
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 8 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- काव्य शिक्षण का उद्देश्य है __
स्पष्टीकरण:- कविता कवि के विविध प्रकार के भावों की अभिव्यक्ति होती है। कविता लिखते समय जिन भावों को कवि आधार बनाता है छात्र यदि उस भाव को समझ सके तो कविता पाठन का उद्देश्य सार्थक हो जाता है।
कविता शिक्षण के उद्देश्य:-
- कविता के विधा से परिचित होना
- कल्पनाशीलता को बढ़ाना
- कविता की व्याख्या कर पाना
- कविता के लय और ताल का आनन्द उठा पाना
कविता शिक्षण के समय ध्यान देने वाली महत्त्वपूर्ण बातें:-
- शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए कि कक्षा में उपरोक्त कविता शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति हो।
- कविता कभी कभी द्वयर्थक होते हैं। तो छात्रों को सभी अर्थ समझ आयें हो।
- छात्रों की कल्पना शीलता को बढ़ाने के लिए उन्हें नये पङ्क्तियों की रचना के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ‘कल्पनाशीलतायाम् विकासं करणीयम्’ अर्थात् 'कल्पनाशीलता को बढ़ाना' यह काव्य शिक्षण का उद्देश्य है।
शिक्षण विधियाँ Question 9:
कक्षायां कथाश्रावणं पुनः पुनः भवितव्यम्, यतः -
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 9 Detailed Solution
अनुवाद - कक्षा में कथा श्रवण बार बार होना चाहिये, क्योंकि -
स्पष्टीकरण -
- भाषा शिक्षण में श्रवण कौशल भाषा अधिगम करने में प्रथम कौशल है।
- जिसका उद्देश्य भाषा को ध्यानपूर्वक सुनना है।
- श्रवण कौशल का सबसे रोचक साधन कथा है ।
- जो सभी के स्तर मानव सुनना पसंद करते हैं।
- कथा श्रवण के विभिन्न लाभ हैं जो छात्रों के साथ-साथ सभी स्तर के लोगों को लाभान्वित करती है।
- कक्षा में शिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक विधि कथा विधि ही है।
- जिसके माध्यम से कक्षा का वातावरण अत्यंत मनोरंजक हो जाता है।
- छात्र भी शिक्षण के प्रति उदासीन नहीं होते हैं।
अतः कक्षा में कथा श्रवण बार बार होना चाहिये क्योंकि यह छात्रों का मनोरंजन करती है।
शिक्षण विधियाँ Question 10:
निम्नांकितेषु अनुवादस्य प्रकारः नास्ति -
Answer (Detailed Solution Below)
शिक्षण विधियाँ Question 10 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - निम्नलिखित में से अनुवाद का प्रकार नहीं है -
स्पष्टीकरण -
अनुवाद - किसी भाषा में लिखित सामग्री को दूसरी भाषा में करना अनुवाद कहलाता है। संस्कृत में अनुवाद का तात्पर्य होता है पश्चाद् कथन। अनुवाद अनु + वाद इन दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें अनु का अर्थ होता है पश्चाद् और वाद वद् धातु से बना जिसका अर्थ होता है कहना या कथन। गुरु अथवा पूर्व में रचना करने वाले महाकवियों के कथनों को पश्चाद् अपने भाषा में कहना अनुवाद कहलाता है।
अनुवाद के प्रकार - अनुवाद को विषय के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है-
- साहित्यिक अनुवाद
- तकनीकी अनुवाद
- चिकित्सकीय अनुवाद और
- विधिक अनुवाद
अनुवाद की प्रकृति के अनुसार अनुवाद के प्रकार -
- मूल-केंद्रित
- मूलमुक्त
अनुवाद के जिन सार्थक और प्रचलित प्रभेदों का उल्लेख अनुवाद विज्ञानियों ने किया है, वह है -
- शब्दानुवाद अर्थात् अक्षरक्ष∶ अनुवाद
- भावानुवाद
- छायानुवाद
- सारानुवाद अर्थात् तथ्यानुवाद∶
- व्याख्यानुवाद
- आशु अनुवाद
- रूपान्तरण
अतः स्पष्ट है कि चित्रानुवाद अनुवाद का भेद नहीं है।