संस्कृत शिक्षाशास्त्र MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संस्कृत शिक्षाशास्त्र - Download Free PDF

Last updated on May 23, 2025

Latest संस्कृत शिक्षाशास्त्र MCQ Objective Questions

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 1:

संस्कृतसाहित्यविषये असत्यमेलनं वर्तते-

  1. स्वप्नवासवदत्तम्-महाकाव्यम्
  2. कादम्बरी-कथा
  3. हर्षचरितम्-आख्यायिका
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : स्वप्नवासवदत्तम्-महाकाव्यम्

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 1 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - संस्कृत साहित्य के विषय में असत्य मेलन है-

स्पष्टीकरण -

  • दिये गये विकल्पों में स्वप्नवासवदत्तम्-महाकाव्यम् यह मिलान अनुचित/असत्य है।
  • स्वप्नवासवदत्तम् यह एक नाटक है। जिसके रचयिता महाकवि भास हैं। इस नाटक में 6 अंक है।
  • संस्कृत साहित्य का क्षेत्र बहुत विशाल है, जिसमें काव्य, महाकाव्य, नाटक, कथा, जीवनी, एकांकी अनेकों विधाओं का समावेश है।
  • जिन्हे पढ़कर पाठक आनन्द का अनुभव करते हैं। साथ ही जीवन मूल्य सम्बन्धी अनेकों बातो को सीखते हैं।

 

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

अन्य सभी विकल्प सुमेलित है अर्थात् सही हैं।

  • अभिज्ञानशाकुन्तलम् (नाटकम्)
    • यह संस्कृत साहित्य का प्रसिद्ध नाटक है, जिसके रचयिता महाकवि कालिदास है।
    • इस नाटक में सात अंक हैं। इसमें राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के परिणय की कहानी है।
  • कादम्बरी (कथा)
    • यह एक सुप्रसिद्ध कथा है।
    • इसके रचयिता महाकवि बाणभट्ट है। 
    • इस कथा के दो भाग हैं। पूर्वभाग और उत्तरभाग।
  • हर्षचरितम् (आख्यायिका)
    • यह महाकाव्य बाणभट्ट द्वारा विरचित है, जिसे बाणभट्ट ने आख्यायिका कहा है। आख्यायिका अर्थात् लघु कथा या कहानी।
    • इसमें 8 उच्छवास हैं। इस ग्रन्थ में महाराज हर्षवर्धन के जीवन चरित्र का वर्णन है।

 

अत कहा जा सकता है कि स्वप्नवासवदत्तम्-महाकाव्यम् सुमेलित नहीं है, क्योंकि यह एक नाटक है।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 2:

समावेशीशिक्षायाः प्रवर्धनार्थं निम्नलिखितयोः कः महत्त्वपूर्णः नास्ति ?

  1. सर्वे बालकाः मिलित्वा शिक्षितुं शक्नुवन्ति इति शिक्षकाः मन्यन्ते
  2. शिक्षकस्य सकारात्मकं निष्पक्षं च मनोवृत्तिः
  3. आचार्यस्य सामाजिक-आर्थिक-स्थितिः
  4. सर्वम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : आचार्यस्य सामाजिक-आर्थिक-स्थितिः

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा महत्त्वपूर्ण नहीं है ?

उत्तर- चार्यस्य सामाजिक-आर्थिक-स्थितिः

Important Points

  • समावेशी शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें सभी विद्यार्थियों, चाहे उनकी शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, भाषायी, या अन्य विभिन्नताएँ हों, को सामान्य शिक्षा प्रणाली में बिना किसी भेदभाव के एकत्रित करने और शिक्षित करने का प्रयत्न किया जाता है।
  • यह विचार सभी शिक्षार्थियों की अलग-अलग आवश्यकताओं को समझने और उन्हें पूरा करने पर आधारित होता है।
  • जब हम समावेशी शिक्षा के प्रमुख आवश्यक तत्वों पर विचार करते हैं, तो शिक्षक का विश्वास कि सभी विद्यार्थी समूह में एक साथ सीख सकते हैं (1), शिक्षक का सकारात्मक और निष्पक्ष रवैया (3) महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं क्योंकि ये वे आधार हैं जो समावेशी शिक्षा के मूल सिद्धांतों को सहारा देते हैं।
  • विकल्प 4, "शिक्षक की सामाजिक आर्थिक स्थिति" समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है।
  • समावेशी शिक्षा का उद्देश्य सभी शिक्षार्थियों की विविधता और उनकी विशिष्ट जरूरतों का समर्थन करना है, न की शिक्षक की व्यक्तिगत सामाजिक या आर्थिक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना।
  • शिक्षक की योग्यता, समझ, और उनका छात्रों के प्रति दृष्टिकोण ही समावेशी शिक्षा की सफलता को निर्धारित करता है, न कि उनकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि।
  • इस प्रकार, यह मानना उचित होगा कि शिक्षक की सामाजिक आर्थिक स्थिति समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने में कोई सीधा योगदान नहीं देती है और इसलिए, उपलब्ध विकल्पों में से इसे महत्त्वपूर्ण नहीं माना जा सकता।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  1. सर्वे बालकाः मिलित्वा शिक्षितुं शक्नुवन्ति इति शिक्षकाः मन्यन्ते- शिक्षक का विश्वाश की सभी बच्चे एक साथ सीख सकते हैं
  2. शिक्षकस्य सकारात्मकं निष्पक्षं च मनोवृत्तिः-  शिक्षक सकारात्मक और निष्पक्ष रवैया
  3. चार्यस्य सामाजिक-आर्थिक-स्थितिः- शिक्षक की सामाजिक आर्थिक स्थिति
  4. सर्वम्- सभी

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 3:

भाषा का कौन सा कौशल सबसे पहले बच्चा सीखता है?

  1. सुनना और समझना
  2. पढ़ना
  3. लिखना
  4. बोलना

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : सुनना और समझना

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 3 Detailed Solution

बच्चा सबसे पहले 'सुनना और समझना' रूपी भाषा का कौशल सीखता है। अतः प्रश्नगत् विकल्प (1) सही है। जबकि अन्य विकल्पगत् भाषा कौशल को जीवन के विभिन्न भागों में चरणबद्ध तरीके से एक बच्चा सीखने का सहज प्रयास करता है।

मानव अपने विचारों का आदान प्रदान मुख्य रूप से चार प्रक्रियाओं यथा सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना द्वारा करता है। भाषा से संबंधित इन चारो प्रक्रियाओं को प्रयोग करने की क्षमता ही भाषा कौशल कहलाती है।

  • ये चारो कौशल एक दूसरे से अतःसंबंधित होते हैं तथा मानव में भाषाई विकास को विस्तार देते हैं।
  • यहां सुनना और पढ़ना विचारों को ग्रहण करने से तथा बोलना और लिखना विचारों को अभिव्यक्त करने से संबंधित है। 
  • इन चारों भाषाई कौशलों में से सबसे पहले श्रवण कौशल का विकास करना चाहिए। 
  • श्रवण भाषा कौशल, विकास का प्रथम और महत्वपूर्ण चरण है।
  • श्रवण कौशल बच्चे को किसी कथन को सुनकर उस पर चिंतन मनन करने योग्य बनाता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे को कथन से संबंधित उचित और सहज प्रतिक्रिया देने या निर्णय लेने योग्य बनाता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे द्वारा प्रतिक्रिया देने के दौरान उनकी तर्किक क्षमता तथा चिंतन कौशल को भी सही दिशा देता है।

नोट: उच्चारण भाषा शिक्षण का एक अभिन्न अंग है जो अक्षरों को मुख से बोलने की प्रक्रिया से संबंधित है। इसमें शुद्धता का स्थान प्रमुख होता है।

अतः स्पष्ठ है कि भाषा कौशलों में सबसे पहले सुनने का कौशल विकास करना चाहिए।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 4:

कक्षायां बालशिक्षार्थिभ्यः मुद्रितपुस्तकैः सह श्रव्यपुस्तकानि तथा च स्पर्शग्राहीज्ञानजनकानि पुस्तकानि स्युः । यतोहि -

  1. विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।
  2. तादृशाणि पुस्तकानि अध्यापकेषु भाराधिक्यं न भवन्ति ।
  3. अनेन कक्षायां विविधता जायते बालाः च विविधतायै स्पृहयन्ति ।
  4. अनेन आकलनाय अध्यापकानां विविधानां पुस्तकानां प्रयोगाय स्वायत्तता भवति ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 4 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- कक्षा में बच्चों के शिक्षार्थियों के लिए मुद्रित पुस्तकों के साथ-साथ ऑडियो पुस्तकें और स्पर्श ज्ञान उत्पन्न करने वाली पुस्तकें भी होंगी। क्योंकि -

उत्तर- विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।

Important Points

  • कक्षा में विविध प्रकार की पुस्तकों का उपयोग भिन्न-भिन्न शैक्षिक आवश्यकताओं और शैलियों के विद्यार्थियों की सहायता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • मुद्रित पुस्तकों के साथ-साथ ऑडियो पुस्तकें और स्पर्श ज्ञान उत्पन्न करने वाली पुस्तकों का समावेश सुनिश्चित करता है कि सभी छात्रों की विविध शिक्षण स्टाइल्स और ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।
  • इस बात को स्वीकार करते हुए कि विद्यार्थियों में शिक्षण की विभिन्न प्रकारीयताएँ होती हैं, विविध प्रकार की पुस्तकों का समावेश एक अधिक समावेशी शिक्षण पर्यावरण सृजित करता है।
  • ऑडियो पुस्तकें उन छात्रों को लाभान्वित करती हैं जिन्हें श्रवण शैली से सीखने में अधिक सक्रियता होती है या जिन्हें पढ़ने में कठिनाई होती है।
  • स्पर्श पुस्तकें विशेष रूप से वे विद्यार्थी जो बहुत छोटे हैं या जिन्हें विशिष्ट शैक्षिक ज़रूरतें हैं, के लिए अत्यंत उपयोगी होती हैं।
  • इन पुस्तकों के माध्यम से, वे स्पर्श की भावना के माध्यम से ज्ञान और समझ को गहराई से अनुभव कर सकते हैं।
  • मुद्रित पुस्तकें पारंपरिक रूप से विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का एक मूल श्रोत रही हैं, जिन्हें बच्चे किताबों के स्पष्ट रूप से पढ़ने में सक्षम होते हैं।
  • इन समस्त प्रकार की पुस्तकों का समावेश यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक विद्यार्थी, उनकी व्यक्तिगत शैक्षिक ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के आधार पर, सहजता से सीखने में सक्षम हो।
  • यह समग्र रूप से शिक्षण प्रक्रिया को सुगम बनाता है और छात्रों के बीच पढ़ाई के प्रति अधिक रुचि और उत्साह को जाग्रत करता है।
  • इस प्रकार, ऐसी पुस्तकें न केवल विविध छात्रों के लिए सुलभ हैं, बल्कि वे एक ऐसा शैक्षिक पर्यावरण सृजित करती हैं जहाँ सभी विद्यार्थियों को उनकी शिक्षण शैली और गतिविधियों के अनुसार बेहतर तरीके से सीखने का अवसर मिलता है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।- ऐसी पुस्तकें विविध छात्रों के लिए सुलभ हैं।
  • तादृशाणि पुस्तकानि अध्यापकेषु भाराधिक्यं न भवन्ति ।- ऐसी किताबें शिक्षकों पर बोझ नहीं होतीं।
  • अनेन कक्षायां विविधता जायते बालाः च विविधतायै स्पृहयन्ति ।- इससे कक्षा में विविधता पैदा होती है और बच्चे विविधता चाहते हैं।
  • अनेन आकलनाय अध्यापकानां विविधानां पुस्तकानां प्रयोगाय स्वायत्तता भवति ।- यह शिक्षकों को मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार की पुस्तकों का उपयोग करने की स्वायत्तता देता है।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 5:

भाषायाः अधिगमप्रक्रिया अतिगहना या आजन्मादामृत्योः चलति।

अनेन कथनेन भवान् सहमतो न वा ?

  1. अहमनेन कथनेन आंशिकरूपेण सहमतोऽस्मि ।
  2. अहमनेन कथनेन आंशिकरूपेण असहमतोऽस्मि ।
  3. अहमनेन कथनेन सहमतोऽस्मि ।
  4. अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 5 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- भाषा अर्जन की प्रक्रिया बहुत गहरी होती है जो जन्म से मृत्यु तक चलती है।

क्या आप इस कथन से सहमत हैं या नहीं?

उत्तर- अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

Important Pointsभाषा अर्जन की प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक नहीं चलती है या इसकी गहराई को लेकर कुछ सीमाएँ होती हैं। इस परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए निम्नलिखित विश्लेषण का सहारा लें।

विश्लेषण:
शैक्षणिक और अनुभवात्मक सीमाएं: व्यक्ति के शिक्षा और अनुभव के आधार पर, भाषा अर्जन की प्रक्रिया में विविधता और गहराई अलग-अलग हो सकती है। सभी व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया उतनी ही समृद्ध और गहरी नहीं होती।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की विविध स्थितियाँ, जैसे कि मस्तिष्क से संबंधित रोग, जीवन के बाद के चरणों में भाषा अर्जन की क्षमता को प्रभावित या सीमित कर सकती हैं।

प्रेरणा और अवसर: भाषा सीखने की प्रेरणा और अवसरों में भिन्नता भाषा अर्जन की गहराई और व्यापकता को प्रभावित करती है। यदि व्यक्ति को नई भाषाएँ सीखने की ओर रुचि नहीं है या वे संबंधित परिस्थितियों या संसाधनों तक पहुँच नहीं रखते, तो उनकी भाषा अर्जन की प्रक्रिया सीमित रह सकती है।

आयु और सीखने की क्षमता: उम्र के साथ, नई भाषाएँ सीखने की क्षमता में परिवर्तन हो सकता है। युवा व्यक्तियों की तुलना में वृद्ध व्यक्तियों में नई भाषा सीखने की क्षमता में कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है।

इस परिप्रेक्ष्य से देखते हुए, भाषा अर्जन के "जन्म से मृत्यु तक" और इसकी "गहराई" के बारे में कथन के सापेक्ष असहमत होना समझ में आता है। यह मानना कि भाषा अर्जन की प्रक्रिया में विविधता, सीमाएँ, और परिवर्तनशीलता होती है, एक वास्तविक और सामाजिक-शैक्षणिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • मैं इस कथन से आंशिक रूप से सहमत हूँ।
  • मैं इस कथन से आंशिक रूप से असहमत हूं।
  • मैं इस कथन से सहमत हूं
  • मैं इस कथन से असहमत हूं

Top संस्कृत शिक्षाशास्त्र MCQ Objective Questions

संविधानस्य ३४३(२) अनुच्छेदानुदानुसारम्________

  1. हिन्दी राजकीयभाषा अस्ति। 
  2. हिन्दी सहायकराजकीयभाषा अस्ति। 
  3. आङ्ग्लभाषा राजकीयभाषा अस्ति। 
  4. आङ्ग्लभाषा सहायकराजकीयभाषा अस्ति। 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : आङ्ग्लभाषा सहायकराजकीयभाषा अस्ति। 

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 6 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - संविधान के 343(2) अनुच्छेद के अनुसार________

स्पष्टीकरण - भारतीय संविधान के 343(2) अनुच्छेद के अनुसार आंग्ल (अंग्रेजी) भाषा सह राजभाषा (सहायक राजकीय भाषा) है।

भारतीय संविधान अनुच्छेद 343-

(1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।

संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप  भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।

(2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था:

परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश [1] द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त  हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकॄत कर सकेगा ।

(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद् उक्त पंद्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा–

(क) अंग्रेजी भाषा का, या

(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

 

संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार हिंदी को राजकीय भाषा कहा गया है और 343 (2) के अनुसार अंग्रेज़ी को सहराजकीय भाषा कह सकते है।

अतः स्पष्ट है कि 'आङ्ग्लभाषा सहायकराजकीयभाषा अस्ति।' यह उचित विकल्प है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • हिन्दी राजकीयभाषा अस्ति।- हिन्दी राजकीय भाषा है।
  • हिन्दी सहायकराजकीयभाषा अस्ति।- हिन्दी सहायक राजकीय भाषा है।
  • आङ्ग्लभाषा सहायकराजकीयभाषा अस्ति।- अंग्रेजी भाषा सहायक राजकीय भाषा है

"बालाः भाषाध्ययनार्थम् अपेक्षितक्षमतां पुरस्कृत्य उत्पन्नाः भवन्ति' कः अवदत्?

  1. जीन् पीगेट् (Jean Piaget)
  2. चाम्स्की (Chomsky)
  3. व्योगोटस्की (Vyogotsky)
  4. पावलोव् (Pavlov)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : चाम्स्की (Chomsky)

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 7 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - "बालक भाषा अध्ययन के लिए अपेक्षित क्षमता से युक्त होकर ही उत्पन्न होते हैं" -  किसने कहा?

स्पष्टीकरण - आधुनिक भाषाविज्ञान के जनक के रूप में जाने जाने वाले नोआम चॉम्स्की ने भाषाविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

संक्षेप में भाषा के बारे में चॉम्स्की का दृष्टिकोण :

  • सहज क्षमता: उनका दृढ़ विश्वास है कि बालक भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता के साथ उत्पन्न होते हैं।
  • उत्पादक व्याकरण: चॉम्स्की के अनुसार यह वाक्यों को उत्पन्न करने के लिए नियमों के एक सीमित समूह को संदर्भित करता है और इसका उपयोग भाषा में अधिक वाक्य बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • सार्वभौम व्याकरण सिद्धांत​: इसके अनुसार सभी बालक भाषा को प्राप्त करने, विकसित करने और समझने की एक जन्मजात क्षमता के साथ पैदा होते हैं। चॉम्स्की का मानना था कि व्याकरण मनुष्यों में एक सार्वभौमिक स्थिरांक होना चाहिए क्योंकि किसी चीज के कारण उन्होंने उत्तेजना की गरीबी को जन्म दिया।
  • भाषा अधिग्रहण उपकरण: चॉम्स्की ने प्रस्तावित किया कि मनुष्य एक भाषा अधिग्रहण उपकरण से लैस हैं जो एक बच्चे को भाषा प्राप्त करने और उत्पादन करने में सक्षम बनाता है।

एक मानव बच्चा भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होता है और उनके पास LAD होता है जो व्याकरण के नियम बनाता है और भाषा को विकसित करने में मदद करता है।
अतः यह स्पष्ट होता है कि 'चाम्स्की (Chomsky)' यह उचित पर्याय है।

अभिनयः कतिविधो भवति?

  1. द्विविधः
  2. चतुर्विधः
  3. त्रिविधः
  4. पञ्चविधः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : चतुर्विधः

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 8 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी का अनुवाद - अभिनय के कितने भेद होते हैं?

स्पष्टीकरण - अभि उपसर्ग पूर्वक निञ् धातु से निष्पन्न अभिनय का अर्थ होता है 'की ओर आकर्षित करना' अर्थात् अभिनय के द्वारा नट रामादि के पात्रों को आत्मसात् करके दर्शकों को आकर्षित करता है। आचार्य भरत ने चार प्रकार के अभिनयों का उल्लेख किया है -

'आङ्गिको वाचिकश्चैव ह्याहार्यः सात्त्विकस्तथा।

ज्ञेयस्त्वभिनयो विप्राः चतुर्धा परिकल्पितः॥' 

अर्थात् विद्वानों ने चार प्रकार के अभिनय का उल्लेख किया है - 
  1. आङ्गिक अभिनय - जिसमें अङ्गों का प्रयोग करके पात्रों के भावादि को व्यक्त किया जाये उसे आङ्गिक अभिनय कहते हैं
  2. वाचिक अभिनय - पात्रों के द्वारा कहे गये बातों को उसी भाव के साथ प्रकट करना वाचिक अभिनय कहलाता है।
  3. सात्विक अभिनय - भय आदि सात्विक भावों का अभिनय सात्विक अभिनय कहलाता है।
  4. आहार्य अभिनय - पात्रानुकूल् वेश-भूषा धारण करना आहार्य अभिनय कहलाता है।

अतः स्पष्ट है कि अभिनय के चार भेद होते हैं।

व्याकरणकक्षायाम् अस्माभिः प्रथमतः

  1. कथविधं व्याकरणरूपं निर्मितम् एतत् व्याख्येयम्।
  2. व्याकरणरूपं सामान्यसन्दर्भे प्रयोज्यम्।
  3. अनियमितरूपाणि व्याख्येयानि यदि विद्यन्ते।
  4. अस्य सामाजिक कार्यप्रणाली व्याख्येया।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : व्याकरणरूपं सामान्यसन्दर्भे प्रयोज्यम्।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 9 Detailed Solution

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अनुवाद  - व्याकरण कक्षा में हमारे द्वारा प्रथमतः -

स्पष्टीकरण

  • व्याकरण भाषा की आत्मा कही जाती है।
  • जहाँ भाषा परस्पर अभिव्यक्ति का साधन है, वहीं भाषा के शुद्ध स्वरूप का प्रतिपादन व्याकरण करता है।
  • शिक्षण प्रक्रिया में जब भाषा शिक्षक द्वारा व्याकरण की कक्षा प्रारंभ करता है, तो प्रथमतः व्याकरण क्या है, क्यों आवश्यक है तथा व्याकरण का महत्व आदि से प्रारंभ करनी चाहिए।
  • क्योंकि कक्षा में जब भी किसी विषय का शिक्षण पहली बार किया जाता है, तो सर्वप्रथम उस विषय विशेष से अवगत कराया जाता है तथा उसे पढ़ने के उद्देश्य को बतलाया जाता है। 
  • ताकि छात्र उस विषय के महत्व को गम्भीरता से समझते हुए उसका अधिगम करें।

 

इसलिए कक्षा में व्याकरण की कक्षा में प्रथमतः व्याकरण रूप के सामान्य सन्दर्भ (परिचय) को प्रयोजित करके कक्षा का आरम्भ करना चाहिए। ताकि छात्र उस विषय विशेष के महत्व को समझ सके एवं उसमें रुचि प्रदर्शित करें।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण-

  • कथविधं व्याकरणरूपं निर्मितम् एतत् व्याख्येयम्। - किसी प्रकार से व्याकरण रूप को निर्मित किया गया यह व्याख्या होनी चाहिए।
  • अनियमितरूपाणि व्याख्येयानि यदि विद्यन्ते। - अनियमित रूपों को व्याख्यायित करना, यदि विद्यमान हैं।
  • अस्य सामाजिक कार्यप्रणाली व्याख्येया। - इसकी सामाजिक कार्यप्रणाली व्याख्यायित होनी चाहिए। (ये तीनों ही यहाँ इस प्रश्न के सन्दर्भ में असंगत हैं।)

भाषायां मूल्याङ्कनस्य मुख्य-उद्देश्यं किं स्यात्?

  1. शिक्षार्थिषु त्रुटीनाम् अन्वेषणम्
  2. विद्यार्थिनां प्रदर्शनं दृष्ट्वा प्रोन्नति (Promotion) कृते निर्णयः
  3. विद्यार्थिसाधित-उपलब्धीनाम् आकलनम्
  4. अधिगमे त्रुटीनां निरीक्षणं तथा न्यूनता परिष्करणम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अधिगमे त्रुटीनां निरीक्षणं तथा न्यूनता परिष्करणम्

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - भाषा में मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

स्पष्टीकरण - मूल्यांकन एक प्रक्रिया है जिसके आधार पर शिक्षक किसी छात्र के ज्ञान का आकलन करते हैं। मूल्यांकन के द्वारा मुख्यतः छात्र की किसी विषय में कमियों, उसकी किसी विषय के प्रति रूचि और उसकी प्रतिभा का आकलन किया जाता है। यह शिक्षा के सुधार तथा गुणवत्ता उन्नयन में सहायक होता है।

मूल्यांकन के अन्य उद्देश्य:

  • नैदानिक और उपचारात्मक शिक्षण के माध्यम से सीखने को बढ़ावा देना।
  • अधिगम के शौक्षिक और गैर -शैक्षिक दोनों पहलुओं का आकलन करना। 
  • शैक्षणिक उपलब्धियों और छात्रों के प्रेरणा स्तर में सुधार लाना।
  • प्रभावी शिक्षण के लिए शिक्षार्थी की विविध शिक्षण आवश्यकताओं को खोजना और उनका निदान करना।
  • सार्थक अधिगम हेतु सुधार लाने के लिए शिक्षार्थी की उपलब्धि का मूल्यांकन करना।

अतः स्पष्ट होता है कि भाषा अधिगम में त्रुटियों का निरिक्षण तथा न्यूनता का निकलना मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य होता है।

भाषाशिक्षणे दृश्य-श्रव्यसामग्री (Audio-Visual Aids) एतदर्थम् उपयुक्ता भवति____

  1. शुद्ध-उच्चारणार्थम्
  2. शुद्धलेखनार्थम् 
  3. शुद्धपाठनार्थम्
  4. उपर्युक्तेषु न किञ्चित्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : शुद्ध-उच्चारणार्थम्

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- भाषा शिक्षण में दृश्य-श्रव्य सामग्री ______ के लिए उपयुक्त होती है।

स्पष्टीकरण:- शिक्षकों द्वारा शिक्षण सामग्री का उपयोग शिक्षार्थियों को आसानी और दक्षता के साथ अवधारणा सीखने में मदद करने के लिए किया जाता है।

दृश्य-श्रव्य सामग्री से तात्पर्य ऐसी सामग्री से है जो पाठ को ध्वनि और चित्रों दोनों रूप में प्रभावी तरीके से प्रस्तुत कर बच्चों के आंख और कान दोनों ज्ञानेंद्रियों को सक्रिय कर के सीखने को सार्थक बनाती है तथा विषय बहुत सरलता से समझने में मदद करती है। उदाहरण: लेज़र प्रोजेक्टर, वीडियो, मल्टीमीडिया आदि।
इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग तब उपयोगी होता है जब बच्चे उसे बहुत सरलता से समझ सके वरना वह सामग्री बच्चे के लिए वस्तु मात्र रह जाएगी जिसकी कोई उपयोगिता नहीं होंगी। 

Important Points 

श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग से लाभ:- 

  • दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग से विद्यार्थी जो कुछ सुनते है उसे सम्मुख देखते भी है तो विषयों, शब्दों आदि के प्रति कोई संशय शेष नहीं बचता। अतः वे उनके उच्चारण भी शुद्ध और स्पष्ट सुन और समझ पाते हैं, जिससे शुद्ध उच्चारण में सहायता मिलती है।
  • बच्चों के आंख और कान दोनों ज्ञानेंद्रियों को सक्रिय कर सीखने को सार्थक बनाता है।
  • पाठ को ध्वनि और चित्रों दोनों रूप में प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में मदद करता है।
  • चलचित्र, दूरदर्शन, ड्रामा, लेज़र प्रोजेक्टर, टीवी, वीडियो, आदि का शिक्षा में प्रयोग करता है।

अतः स्पष्ट है कि भाषा शिक्षण में दृश्य-श्रव्य सामग्री शुद्ध उच्चारण के लिए उपयुक्त होता है।

"हरबारीर्यपञ्चपदी" इत्यस्य विधेः विकसितं रूपं किम्?

  1. विश्लेषणात्मकविधिः
  2. मूल्याङ्कनविधिः
  3. व्याकरणविधिः
  4. व्याख्याविधिः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : मूल्याङ्कनविधिः

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 12 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'हरबारीर्यपञ्चपदी' इस विधि का विकसित रूप क्या है?

स्पष्टीकरण -

हरबर्टीय पञ्चपदी - शिक्षाशास्री हरबर्ट महोदय के द्वारा इस सिद्धान्त की स्थापना की गई। इसलिए ही इसे हरबर्टीय पञ्चपदी कहते हैं। इसविधि में उल्लिखित पाँच सोपान इस प्रकार है -

  1. प्रस्तावना (उन्मुखीकरणम्) इसके माध्यम से छात्रों के पूर्वज्ञान को ज्ञात किया जाता है। पूर्वज्ञान पर आधारित चित्र, मानचित्र, दिखाकर कुछ प्रश्न पूछे जाते है। प्रश्नों द्वारा छात्रों को मानसिक रूप से तैयार किया जाता है। पाठ की सूचना शिक्षक द्वारा कक्षा में दी जाती है।
  2. विषयोपस्थापना (प्रदर्शन) इस सोपान के अन्तर्गत नवीन विषय का शिक्षण प्रारम्भ किया जाता है। प्रत्येक शिक्षक और विषय के शिक्षण के लिए भिन्न-भिन्न शैली होती है। जैसे – गद्य शिक्षण में आदर्श वाचन, अनुकरण वाचन, अशुद्धि संशोधन आदि विविध विधियों से काठिन्यनिवारण, पाठप्रवर्धन इत्यादि का समावेश किया जाता है।
  3. तुलना (अमूर्तीकरणम्) छात्रों में जिस स्थल में कठिनता अनुभव हो उनको निवारण के लिए समान भाव एवं विषय से युक्त उदाहरण, दृश्य-श्रव्योपकरण, या सारकथन का प्रयोग किया जाता है।
  4. सामान्यीकरण इस सोपान में छात्र पाठ के निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। जैसे व्याकरण पाठ में उदाहरणों से नियम के प्रति, गद्यपाठ में पाठ के मुख्य सार के प्रति। नियमों एवं सिद्धान्त का स्रोत एवं साधनों का सामान्यीकरण किया जाता है।
  5. प्रयोग विषय का अध्ययन करने के बाद नव अर्जित ज्ञान का प्रयोग तथा शिक्षण की सफलता के लिए, अभ्यास कार्य करवाया जाता है। विद्यार्थियों में जो शंका होती है, उसको दूर किया जाता है। उसके बाद कुछ मौखिक एवं लिखित कार्य दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों में सम्पादित ज्ञान का परिपोषण करना है।

Important Points

'हरबर्टीय पञ्चपदी' विधि का विकसित-रूप मूल्यांकन विधि है। इसमें प्रत्येक सोपान से सम्बन्धित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कक्षा में आयोजित क्रियाकलापों का सयोजन करके मूल्यांकन किया जाता है।

  • मूल्याङ्कनविधि मूल्यांकन छात्र के व्यवहार में हुए परिवर्तनों का ज्ञान कराता है। शिक्षण के उद्देश्य प्राप्ति किस सीमा तक हुई है इसका पता भी मूल्यांकन से चलता है।

Additional Information

  • विश्लेषणात्मकविधि – पाठ्यवस्तु का पूर्ण ज्ञान कराने के लिए पहले वाक्य सिखाकर उसके पश्चात् शब्द अनन्तर वर्ण सिखाने की विधि को विश्लेषणात्मक विधि कहते हैं।
  • व्याकरणविधि - इस विधि में विद्यार्थियों को मुख्य रुप से व्याकरण के नियमों से परिचित करा कर द्वितीय भाषा शिक्षण पर बल दिया जाता है।
  • व्याख्याविधि - हरबर्टीय पञ्चपदी विधि को ही कथन या व्याख्या विधि भी कहते हैं।

‘आगमन-उपागमः’ इत्यनेन अभिप्रायः अस्ति-

  1. व्याकरणशिक्षणे नियमानां स्पष्टीकरणम्।
  2. उदाहरणैः नियमानां सिद्धान्तानां स्पष्टीकरणम्।
  3. व्याख्याद्वारा भावस्पष्टीकरणम्।
  4. भाषा-दक्षतायाः आकलनम्।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : उदाहरणैः नियमानां सिद्धान्तानां स्पष्टीकरणम्।

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 13 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- ‘आगमन उपागम’ इससे अभिप्राय है-

स्पष्टीकरण:- शिक्षण पद्धति सिद्धांतों, शिक्षाशास्त्र और प्रबंधन रणनीतियों की सहायता से सिद्धांत को व्यवहार में लाने का एक तरीका है। शिक्षण विधियाँ शिक्षकों को पाठ को सुसंगत तरीके से योजना बनाने और प्रस्तुत करने में मदद करती हैं।

आगमन विधि:- इस विधि में शिक्षक छात्रों के द्वारा उदाहरणों की सहायता से सामान्य सिद्धान्त निकलवाने का प्रयास करते हैं अर्थात् तथ्यों तथा घटनाओं के निरीक्षण तथा विश्लेषण द्वारा सामान्य नियमों तथा सिद्धान्तों का निर्मांण किया जाता है। उदाहरणों से नियमों की ओर इस विधि के चार सोपान है-

  1. उदाहरण: - विशिष्ट से सामान्य की ओर
  2. निरीक्षण: - ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. नियमितिकरण: - सरल से कठिन की ओर
  4. परीक्षण:- स्थूल से सूक्ष्म की ओर

अतः स्पष्ट है कि उदाहरण के द्वारा नियमों और सिद्धान्तो का स्पष्टीकरण करने वाली पद्धति को 'आगमन उपागम' कहा जाता है।

Additional Information

  • निगमन विधि:- यह व्याकरण शिक्षण की परम्परागत विधि है। इसमें पहले नियमों को प्रस्तुत किया जाता है, फिर उन नियमों को समझाने हेतु उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है, जिससे छात्र उस नियम को समझ ले। इसमें नियम से उदाहरण की ओर शिक्षण होता है।
  • अव्याकृति विधि:- इस विधि में साहित्य के साथ ही व्याकरण पढ़ाया जाता है, पृथक् रूप से नहीं।
  • भाषा संसर्ग विधि:- यह प्रणाली उच्च कक्षा के लिए ही उपयुक्त है। इसमें भाषा पर जिसका अधिकार हो गया हो, उन्हें कुछ विद्वानों के ग्रन्थ पढ़ाये जाते हैं, जिससे वे भाषा के शुद्ध रूप पर विचार कर सके।

कतिविधेषु कौशलेषु नैपुण्यसम्पादनं भाषायाः सांकेतिकं प्रयोजनम्‌ अस्ति ?

  1. त्रिविधेषु
  2. चतुर्विधेषु
  3. द्विविधेषु
  4. पथविधेषु

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : चतुर्विधेषु

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 14 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - कितने कौशलों में नैपुण्य संपादन करना भाषा का सांकेतिक प्रयोजन है?

स्पष्टीकरण - अनुपात एवम् क्रम के सिद्धांत अनुसार बच्चों में चार भाषा कौशलों का क्रमबद्ध रूप से विकास होता है। 

एक नई भाषा को प्राप्त करने में यह चार कौशल सम्मिलित होते हैं - श्रवण, सम्भाषण , पठन और लेखन (LSRW)।

  • सुनने और पढ़ने का उपयोग सूचना प्राप्त करने के लिए चैनल के रूप में किया जाता है, इस प्रकार इन दो कौशलों को ग्रहणात्मक कौशल कहा जाता है।
  • बोलने और लिखने का उपयोग सूचना भेजने के लिए चैनल के रूप में किया जाता है, इसलिए इन दो कौशलों को उत्पादक कौशल के रूप में लेबल किया जाता है।

Important Points

चतुर्विध भाषा कौशल क्रमानुसार -

श्रवण → सम्भाषण → पठन → लेखन

  1. श्रवण कौशल - भाषा के अन्य सभी कौशलों को सीखना एक पूर्वापेक्षा है। यह जो बोली जाती है, उसमें से अर्थ निकालने की एक प्रक्रिया है। इसमें एक भाषा की ध्वनियों को प्राप्त करना, शब्दों में ध्वनियों को संसाधित करना, उन शब्दों के अर्थ और समझ को प्राप्त करना शामिल है। अतः यह चारों कौशलों में सबसे सरल और प्रथम कौशल होता है।
  2. सम्भाषण कौशल - यह सुनने के कौशल से अधिक जटिल है। सम्भाषण कौशल श्रवण कौशल पर आधारित होता है। यह एक भाषा के व्याकरणिक और शाब्दिक संसाधनों, सही उच्चारण, स्पष्ट रूप से बताने की क्षमता आदि के बारे में जागरूक करता है। यह सुनकर बोलने पर आधारित है, अतः श्रवण के बाद यह दूसरा कौशल है।
  3. पठन कौशल - यह एक सक्रिय कौशल है जो शैक्षणिक सफलता निर्धारित करता है। पठन में धारणा, मान्यता, संघ, समझ, संगठन और खोज अर्थ शामिल हैं।
  4. लेखन कौशल - यह एक सचेत और नियोजित गतिविधि है। यह लेखक के लेखन की यांत्रिकी का उपयोग करने की भाषाई क्षमता को संदर्भित करता है।

अतः भाषा के चार कौशलों में नैपुण्य संपादन करना भाषा का प्रयोजन होता है यह स्पष्ट होता है।

अनौपचारिक-माध्यमेन कस्याश्चिद् भाषायाः अधिगमार्थम् अधोलिखितेषु कस्य समावेशः अस्ति?

  1. भाषाप्रयोगशालायाः
  2. गृहपरिवेशस्य
  3. भाषाप्रशिक्षणकेन्द्रस्य
  4. विद्यालयस्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : गृहपरिवेशस्य

संस्कृत शिक्षाशास्त्र Question 15 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- अनौपचारिक माध्यम से किसी भाषा के अधिगम के लिये निम्न में से किसका समावेश होता है?

स्पष्टीकरण:- भाषा अधिगम से तात्पर्य मातृ भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को सीखने से है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो बच्चों को अन्य भाषा प्रयोग में भी दक्ष बनाती है। प्रारंभ में सामाजिक अन्तःक्रिया के फलस्वरूप ही बालक सामाजिक भाषा को सीख के अपने भावों और विचारों को आसानी से सही रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम होता है।

किसी भी भाषा के अधिगम का दो प्रकार होता है-

अनौपचारिक माध्यम:-

  • विद्यार्थी अपने तात्कालिक परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।
  • उत्तरोत्तर, वह कुछ ध्वनियों, शब्दों, एकाक्षर शब्दों आदि के साथ अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण का प्रयोग करता है और धीरे-धीरे छोटे सरल वाक्य बनाना सीखता है।

औपचारिक माध्यम:-

  • आगे चलकर विधिवत औपचारिक भाषा-शिक्षण द्वारा भाषा-अधिगम होता है जो पूर्णतः पूर्व निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित होता है।
  • यह विद्यालय में विधिवत् नियमों और सिद्धान्तों के साथ पाठ्यपुस्तक आदि की सहायता से सिखाया जाता है। जिसमें भाषाप्रयोगशाला और भाषाप्रशिक्षणकेन्द्र भी सहायक होते हैं।

अतः स्पष्ट है की भाषा अधिगम में ‘गृहपरिवेश’ का समावेश होता है। क्योंकि बालक अपने परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।

Additional Information

एक विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है-

  • भाषा अर्जन,
  • भाषा अधिगम

भाषा अर्जन:- इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है।भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवत्ति दिखाई देती है।

भाषा अधिगम:- अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जानना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

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