भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Quiz in हिन्दी - Objective Question with Answer for भाषा अधिगम और भाषा अर्जन - मुफ्त [PDF] डाउनलोड करें

Last updated on Mar 10, 2025

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Latest भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Objective Questions

Top भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Objective Questions

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 1:

रचनात्मक आकलनस्य प्रधानोद्देश:

  1. उत्तीर्णतायाः अनुतीर्णतायाश्च निर्धारणम्
  2. उपलब्धिमापनम्
  3. बोधनाध्ययनोन्नत्तीकरणम्
  4. छात्रदोषान्वेषणम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : बोधनाध्ययनोन्नत्तीकरणम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 1 Detailed Solution

प्रश्न अनुवाद - रचनात्मक आकलन का प्रधान उद्देश क्या है?

स्पष्टीकरण - रचनात्मक आकलन का प्रधान उद्देश बोधन के अध्ययन की उन्नति करना है।

Important Points

रचनात्मक आकलन -

  • रचनात्मक मूल्यांकन प्रतिपुष्टि उपलब्ध कराता है जो विद्यार्थी को शिक्षा की प्राप्ति में होने वाले त्रुटियों को समझने में तथा उस त्रुटियों को दूर करने में शिक्षक की सहायता करता है।
  •  रचनात्मक मूल्यांकन में कार्य अनुभव, कला शिक्षा और स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कार्य निष्पादन का निर्धारण 5 बिंदु वाले पैमाने द्वारा किया जाता है। 

रस्किन के अनुसार - रचनात्मक आकलन पूरे शिक्षण सत्र में चलने वाली प्रक्रिया है, जिससे इस तथ्य का निर्धारण किया जाता है कि किसी निश्चित कार्य को पूर्ण करने में छात्र ने कितनी प्रगति की है।

गिलबर्ग सैक्स के अनुसार- रचनात्मक आकलन वह पद्धति है, जिसके माध्यम से शिक्षण के उद्देश्य किस हद तक प्राप्त हो रहे हैं तथा उनके प्राप्त करने में दृष्टिगत कमियों का निवारण कैसे किया जाए, इन तथ्यों पर प्रकाश डालता है।

रचनात्मक आकलन शिक्षण प्रक्रिया के दौरान किया गया अवलोकन है, जो विविध कार्यों के माध्यम से होता है -

  • कविता/गीत की रचना करते समय।
  • छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति के समय।
  • छात्रों के चित्र बनाते, चित्र देखकर कथा कथन करते समय।

रचनात्मक आकलन के उद्देश्य -

  • रचनात्मक आकलन शिक्षण प्रक्रिया से संबंधित होता है।
  • इसके द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में परिवर्तन एवं सुधार किया जाता है।
  • रचनात्मक आकलन का कार्य शिक्षण प्रक्रिया में लगातार सुधार लाना है।
  • रचनात्मक आकलन की प्रक्रिया में अध्ययन शिक्षण की प्रक्रिया शामिल है।
  • रचनात्मक आकलन शैक्षिक कार्यक्रम तथा नीति निर्धारण उद्देश्यों में महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है।

अत: उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है की रचनात्मक आकलन का प्रधान उद्देश बोधन के अध्ययन की उन्नति करना है। अर्थात ज्ञान के अध्ययन का ज्ञान के आकलन रचनात्मकता द्वारा किया जाता है।

Additional Information

  • उत्तीर्णता: अनुतीर्णतायाश्च निर्धारणम् - उत्तीर्ण एवं अनुतीर्ण का निर्धारण।
  • उपलब्धिमापनम् - प्राप्त गुणों का मापन।
  • छात्रदोषान्वेषणम् - छात्रों में दोषों संशोधन।
उपर्युक्त सभी अन्य विकल्प मूल्यांकन विधि से संबंधित है अत: वह शिक्षण प्रक्रिया के बाद किया जानेवाला अवलोकन है। अत: यह असंगत विकल्प है, तथा रचनात्मक आकलन शिक्षण प्रक्रिया के दौरान किया जानेवाला अवलोकन है। जिसका उद्देश बोधन के अध्ययन की उन्नति करना है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 2:

यदि छात्राः व्याकरणस्य नियमानां बोधवन्तः भवेयुः त्रुटिपरिष्कारं च कुर्वन्तु तदा शिक्षकः - व्याकरणं शिक्षते-

  1. स्फुट:
  2. अन्तर्हितः
  3. भाषाशास्त्रीयः
  4. प्रतिषेधी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : स्फुट:

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- यदि छात्र व्याकरण के नियमों को समझते हैं और गलतियों को सुधारते हैं, तो शिक्षक व्याकरण सीखता है।

उत्तर- स्फुट:

Important Points

  • भाषा शिक्षण की दो मुख्य शैलियाँ होती हैं: स्फुट (explicit) और अन्तर्निहित (implicit)
  • स्फुट शिक्षण या स्पष्ट शिक्षण वह होती है जब भाषा के नियमों और संरचनाओं को प्रत्यक्ष रूप से पढ़ाया और समझाया जाता है।
  • अध्यापक यह स्पष्ट रूप से बताता है कि किसी वाक्य का सही रूप क्या होगा, और छात्रों को व्याकरण के नियमों को समझाता है जिसे उन्हें याद रखना और उनका पालन करना होता है।
  • इस प्रकारी से, छात्र नियमों को स्पष्टता के साथ समझते हैं और उनसे समझते हैं कि कौन सी गलतियों को सुधारा जा सकता है।
  • यह विधा विशेष रूप से संगठनात्मक कौशलों को विकसित करने और व्याकरण का व्यापक ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपयोगी हो सकती है, जिससे भाषा की सही समझ का निर्माण होता है।
  • इस प्रकार, यदि एक शिक्षक कि 'छात्र व्याकरण के नियमों को समझते हैं और गलतियों को सुधारते हैं', तो यह सूचित करता है कि शिक्षक स्फुट या स्पष्ट तरीके से व्याकरण सिखा रहा है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 3:

‘पृच्छा-आश्रित-अधिगमनम्’ (Enquiry based learning) इत्यस्य लक्षणं कुत्र?

  1. शिक्षकः कार्यं स्पष्टीकृत्य अधिगमनार्थं साहाय्यं करोति।
  2. छात्राः स्वजिज्ञासां प्रकटीकुर्वन्ति।
  3. उपरिलिखितयोः प्रथमं द्वितीयञ्च/उपरिलिखितं (1) (2) च
  4. केवलं द्वितीयम् (2)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उपरिलिखितयोः प्रथमं द्वितीयञ्च/उपरिलिखितं (1) (2) च

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 3 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद - 'पृच्छा-आश्रित-अधिगम' इसका लक्षण कहाँ है?

स्पष्टीकरण -

पृच्छा-आश्रित-अधिगम - यह प्रश्नों को प्रस्तुत करने और नई समझ की खोज में निर्णय लेने के लिए बच्चे को अपने स्वयं के अनुभवों से संबद्ध करने पर जोर देता है।

Important Points

पृच्छा-आश्रित-अधिगम की उपयोगिता -

  • यह छात्र की खोज और अन्वेषण करने की क्षमता विकसित करता है, अर्थात् छात्र अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हैं।
  • शिक्षक छात्रों की जिज्ञासा को शान्त कर अधिगम के लिए सहायता करता है।
  • यह अधिगम में छात्र के पांच इंद्रिय अंगों के उपयोग पर जोर देता है।
  • इसमें मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक रूप से छात्र की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें अनुमान लगाना, अवलोकन करना, पूर्वानुमान करना, वर्गीकरण करना, सवाल करना, मापन करना, विश्लेषण करना और व्याख्या करना शामिल है।

अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि पृच्छा-आश्रित-अधिगम में ‘छात्राः स्वजिज्ञासां प्रकटीकुर्वन्ति’ अर्थात् छात्र अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हैं और ‘शिक्षकः कार्यं स्पष्टीकृत्य अधिगमनार्थं साहाय्यं करोति’ अर्थात् शिक्षक छात्रों की जिज्ञासा को शान्त कर अधिगम के लिए सहायता करता है। 

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 4:

भाषाधिगमार्थं किं सर्वाधिकं महत्त्वपूर्णम्?

  1. पाठ्यपुस्तकम्
  2. अतिरिक्तपठनसामग्री
  3. बालसाहित्यम्
  4. अभ्यास-प्रपत्रम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : बालसाहित्यम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 4 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद - भाषा अधिगम के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है?

स्पष्टीकरण - अधिगम शब्द दो शब्दों के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जाना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

भाषा अधिगम से तात्पर्य मातृभाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को सीखने से है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है जो बच्चों को अन्य भाषा प्रयोग में भी दक्ष बनाती है। प्रारंभ में सामाजिक अन्तःक्रिया के फलस्वरूप ही बालक सामाजिक भाषा को सीख के अपने भावों और विचारों को आसानी से सही रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम होता है। कोई भी भाषा सीखने का एक क्रम होता है-

  • विद्यार्थी अपने तात्कालिक परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।
  • उत्तरोत्तर, वह कुछ ध्वनियों, शब्दों, एकाक्षर शब्दों आदि के साथ अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण का प्रयोग करता है और धीरे-धीरे छोटे सरल वाक्य बनाना सीखता है।
  • इसी क्रम में आगे चलकर विधिवत औपचारिक भाषा-शिक्षण द्वारा भाषा-अधिगम होता है जो पूर्णतः पूर्व निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित होता है।

भाषा अधिगम में बालसाहित्य, पाठ्यपुस्तक, अतिरिक्तपठनसामग्री, अभ्यास-प्रपत्र सभी सहायक होते हैं तथापि बालसाहित्य भाषाधिगम में अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिससे बालक में तत् संबन्धी भाषा में रुचि और प्रारम्भिक ज्ञान की प्राप्ती होती है।

Additional Information

एक विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है- 'भाषा अधिगम' तथा 'भाषा अर्जन'

  • भाषा अर्जन - इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 5:

प्राथमिकस्तरे बालस्य भाषाविकासार्थं सर्वतो महत्वपूर्णम् अस्ति _______

  1. व्याकरणम् ज्ञानम् 
  2. भाषासमृद्धं वातावरणम्
  3. भाषायाः पाठ्यपुस्तकम्
  4. बालस्य आकलनम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भाषासमृद्धं वातावरणम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 5 Detailed Solution

प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:-प्राथमिक स्तर पर बालक के भाषा विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है_____

स्पष्टीकरण:-प्राथमिक स्तर पर बालकों में भाषा का अर्जन होता है। भाषा अर्जन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य ज्ञान को बूझने और समझने के साथ-साथ शब्दों और वाक्यों को संप्रेषित करने और उपयोग करने की क्षमता प्राप्त करता है।

भाषा अर्जन: इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। सीखी हुई भाषा को समझने की क्षमता अर्पित करना तथा उसे दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने को भाषा अर्जन कहते हैं। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है। 

  • भाषा अर्जन एक सहज एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बच्चें घरेलू परिवेश में भाषा के नियमों को आसानी से आत्मसात् करते हैं, और बच्चे ;भाषा को सहज और स्वाभाविक रूप से सीखते हैं।
  • भाषा अर्जन के माध्यम से  बालक अनुकरण द्वारा प्रथम भाषा सीख कर अपनी बातों को बोलचाल अर्थात घर की भाषा में आसानी से अभिव्यक्त कर पाता है।
  • भाषा अर्जन प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे अनुकरण द्वारा ;भाषा सीख कर अपनी बातों को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम हो पाता है।
  • भाषा अर्जन की प्रक्रिया एक स्वाभाविक, और अनौपचारिक प्रक्रिया है जो कक्षा में भाषा के अधिगम से भिन्न होती है।

अतः उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्राथमिक स्थर में बालक के भाषा-विकास के लिए भाषा समृद्ध वातावरण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए 'भाषासमृद्धं वातावरणम्' यह उचित पर्याय है। 

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 6:

अधस्तनेषु किं भाषाधिग्रहणाधिगमयोः मूलभूतं पार्थक्यं वर्तते?

  1. प्रवाहः शुद्धता च (Fluency and Accuracy)
  2. भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language)
  3. शुद्धता वेगः च (Accuracy and pace)
  4. वेगः उच्चारणम् च (Pace and Pronunciation)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language)

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 6 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद - निम्नलिखित में से क्या भाषार्जन और अधिगम में मूलभूत अन्तर है?

स्पष्टीकरण - विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है -

  1. भाषा अर्जन - इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है।भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
  2. भाषा अधिगम - अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जानना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

Important Pointsभाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम में स्थित मुलभूत अन्तर-

विद्यार्थी भाषा अधिगम और भाषार्जन इन दोनों ही प्रकार से भाषा अधिग्रहण करते है परन्तु इन दोनों में मुख्यत: जो अन्तर है वह बच्चा किस स्थिति में किससे सम्पर्क में आता है और किस परिस्थिति में अथवा किस साधन के माध्यम से भाषा ग्रहण करता है यही इसका मुलभुत उद्देश होता है। इसलिए

भाषा अर्जन एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसके अंतर्गत हम अपने आस पास के वातावरण, माता पिता और अपने से बड़ो व्यक्तियों के सम्पर्क में रहकर भाषा को सीखते है। यह एक प्राकृतिक प्रकिया है। इसके लिए कोई औपचारिक साधन की आवश्यकता नही पड़ती है। यह एक प्रकार से मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा होती है। इसे भाषा प्रथम के नाम से भी जानते है।

भाषा अधिगम  जिन भाषाओ को सीखने के लिए हम औपचारिक साधनों का प्रयोग करते है। साथ ही साथ जिसे सीखने के लिए नियम और ग्रामर होती है। उसे भाषा अधिगम कहते है।इसे भाषा द्वितीय के नाम से जानते है। इसके अंतर्गत क्षेत्रीय भाषा के अलावा अन्य भाषाएँ आदि जाती है। इसमे अंग्रेजी भाषा भी आ जाती है।

इस प्रकार स्पष्टीकरण से हमें ज्ञात होता है की, भाषार्जन और भाषा अधिगम में भाषा ग्रहण करने के जो विभिन्न तरीके होते है वही भाषार्जन और अधिगम में मूलभूत अन्तर है और इसी प्रक्रिया को भाषा का साम्मुख्यम् भी कहते है। भाषा का सम्पर्क- यह भाषा सीखने के महत्वपूर्ण प्रारंभिक वर्षों के दौरान बच्चों को आसानी से भाषा उपलब्ध कराने की प्रकिया है।

अत: भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language) यह पर्याय उचित है।
Key Points

भाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम दोनों में संवाद (अनुवाद) सबसे पहले तथा अनिवार्य होता है। अतः यह कथन पूर्णतः गलत है कि भाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम में अनुवाद का उपयोग नहीं किया जाता है। 

भाषा अर्जन परिभाषा - चॉम्स्की के अनुसार –‘भाषा अर्जन की क्षमता बालकों में जन्मजात होती है तथा वह भाषा को पहचानने की शक्ति के साथ ही पैदा हो में हैं। 

  • यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। 
  • इसे हम अपने आ पास के वातावरण द्वारा सीख लेते हैं 
  • यह अनौपचारिक शिक्षण कहलाता है 

भाषा अधिगम परिभाषा - चॉम्स्की के अनुसार- 'बालकों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है तथा भाषा मानव मस्तिष्क में पहले से ही सम्मिलित होती है 

  • यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है। 
  •  इसे सीखने के लिए विशेष स्थान (विद्यालय) की आवश्यकता होती है 
  • यह मुख्य रूप से औपचारिक शिक्षण होता है

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 7:

प्रथम भाषा विकासः साधारणतया ज्ञायते ______

  1. अधिगमः इति (Learning)
  2. अधिग्रहणम् इति (Acquisition)
  3. परिवर्धनम् इति (Development)
  4. संज्ञानम् इति (Cognition)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अधिग्रहणम् इति (Acquisition)

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 7 Detailed Solution

प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- प्रथम भाषा विकास को साधारण रूप में कहते हैं _______

स्पष्टीकरण:- प्रथम भाषा विकास में 'अधिग्रहणम्' मतलब भाषा अर्जन का महत्व होता है।अतः उसे 'अधिग्रहणम् इति (Acquisition)' कहा जाता है।

Important Points

भाषा अर्जन प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। सीखी हुई भाषा को समझने की क्षमता अर्पित करना तथा उसे दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने को भाषा अर्जन कहते हैं। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवत्ति दिखाई देती है। 

 बालक परिवार में रहकर अपनी जन्मजात क्षमता के आधार पर भाषा अर्जन के तहत बोलचाल की भाषा सीखता है क्योंकि:

  • भाषा अर्जन एक सहज एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बच्चें घरेलू परिवेश में भाषा के नियमों को आसानी से आत्मसात् करते हैं।
  • भाषा अर्जन के माध्यम से  बालक अनुकरण द्वारा प्रथम भाषा सीख कर अपनी बातों को बोलचाल अर्थात घर की भाषा में आसानी से अभिव्यक्त कर पाता है।

सांकेतिक भाषा

भाषा का यह दृश्य रूप बालक द्वारा उसके विचारों को हाथ, उंगली, हाव-भाव आदि के माध्यम से अभिव्यक्त करने से संबंधित है।

लिखित भाषा

भाषा का यह रूप बालक द्वारा उसके मौलिक विचारों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने से संबंधित है।

 

अतः उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्रथम भाषा विकास में 'अधिग्रहणम्' महत्वपूर्ण होता है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 8:

अधोलिखितासु प्रक्रियासु कस्याः प्रयोगः एकस्यां भाषायां सम्यक्लेखनशिक्षणाय क्रियते ? 

  1. विचारोद्दोलनम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - सम्पादनम् - समापनम्
  2. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - प्रारूपलेखनम् - रूपरेखानिर्माणम् - सम्पादनम् - समापनम्
  3. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - रूपरेखानिर्माणम् -समापनम्
  4. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 8 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- किसी भाषा में सही लेखन सिखाने के लिए निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है?

उत्तर- विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

Important Points"विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्" किसी भाषा में सही लेखन को सिखाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक क्रमिक प्रक्रिया का विवरण है। इस प्रक्रिया का प्रत्येक चरण लेखन कौशल को सुनियोजित और विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आइए इन चरणों का विस्तार से विवरण करें:

विचारोद्दोलनम् (Brainstorming): इस चरण में, लेखक विभिन्न विचारों और संकेतों पर चिंतन करता है। यह एक रचनात्मक प्रक्रिया है जहाँ अवधारणाओं, विचारों, और विषयों पर खुले मन से सोचा जाता है, जिससे लेखक को अपने लेखन के लिए एक दिशा मिलती है।

बिन्दुनिर्धारणम् (Point Determination): विचारोद्दोलन के बाद, लेखक उन विचारों को चुनता है जो उसे सबसे उपयुक्त और महत्वपूर्ण लगते हैं। इस चरण में, मुख्य विचारों और बिंदुओं की पहचान की जाती है जिन पर लेखन में ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

रूपरेखानिर्माणम् (Outline Formation): बिन्दुनिर्धारण के बाद लेखक एक संरचित रूपरेखा निर्माण करता है। इसमें विचारों को एक क्रम में व्यवस्थित करना शामिल है, जिससे लेखन की दिशा और संरचना स्पष्ट हो।

प्रारूपलेखनम् (Draft Writing): रूपरेखा के आधार पर लेखक पहला मसौदा (ड्राफ्ट) लिखना शुरू करता है। इस चरण में, वह अपने विचारों को अधिक विस्तार से विकसित करता है, और अपने लेखन को ठोस रूप देना शुरू करता है।

सम्पादनम् (Editing): मसौदे के निर्माण के बाद, लेखक वर्तनी, व्याकरण, शैली और संरचना के लिहाज से अपने लेखन का संपादन करता है। इसे पढ़ने और आवश्यक सुधार करने की प्रक्रिया में, लेखन को और अधिक परिष्कृत और सुधारित किया जाता है।

समापनम् (Conclusion): अंतिम चरण में, लेखक अपने लेखन का समापन करता है, जिसमें अंतिम संस्करण को तैयार करना और उसे प्रस्तुत करना शामिल है। इस स्तर पर, लेख को पूरी तरह से पोलिश किया जाता है और प्रकाशन या वितरण के लिए तैयार किया जाता है।

यह प्रक्रिया लेखन के कौशल को सिखाने और विकसित करने में बेहद प्रभावी होती है क्योंकि यह कदम-दर-कदम मार्गदर्शन प्रदान करती है और लेखक को अपने विचारों को संगठित और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने में मदद करती है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 9:

एका शिक्षिका शिक्षार्थिनः आदौ अक्षराणां परिचयं कारयति अनन्तरं शनैः शनैः तेषां __________ ध्वनिभिः सह सम्बन्धं स्थापयति। सा अनुसरति __________। 

  1. परिस्थितिपरक - उपागमम्
  2. संरचनात्मक - उपागमम्
  3. स्वनिमिक - उपागमम्
  4. समस्यासमाधान - उपागमम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : स्वनिमिक - उपागमम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 9 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- एक शिक्षक पहले शिक्षार्थी को अक्षरों से परिचित कराता है और फिर धीरे-धीरे उन्हें __________ ध्वनियों से जोड़ता है। वह अनुसरण करती है __________।

उत्तर- स्वनिमिक - उपागमम्

Important Points

  • स्वनिमिक उपागम (Phonemic Approach) एक पढ़ाने की विधि है जिसका उपयोग शिक्षार्थियों को पढ़ाने और लिखने के लिए किया जाता है।
  • इस उपागम में, शिक्षार्थियों को पहले विभिन्न अक्षरों और उनके ध्वनियों से परिचित कराया जाता है, और फिर धीरे-धीरे, ये अक्षर और ध्वनियाँ शब्दों और वाक्यों में जोड़े जाते हैं।
  • स्वनिमिक उपागम का मुख्य उद्देश्य छात्रों को ध्वनि-वर्ण सम्बन्ध के सिद्धांत को समझाना है, यानी कि विशेष ध्वनियाँ कैसे विशेष अक्षरों के साथ मेल खाती हैं।
  • इसे ध्वनिज्ञान के रूप में भी जाना जाता है, जो बच्चों के लिखने और पढ़ने की क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण होता है।
  • उदाहरण के लिए, एक शिक्षक पहले शिक्षार्थी को 'स' अक्षर के साथ जोड़ सकता है, और उसकी ध्वनि दिखा सकता है, और फिर धीरे-धीरे, वह उसे 'स' ध्वनि के साथ अन्य अक्षरों को जोड़ना सिखा सकता है, जैसे कि 'स' + 'म' = 'सम' या 'स' + 'ट' = 'सट'।
  • इस तरह, शिक्षार्थी को न केवल अक्षरों और उनकी ध्वनियों का ज्ञान होता है, बल्कि वह उन्हें कैसे शब्दों में जोड़ना है, यह भी सीखता है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 10:

 भाषायाः अधिगमकाले शिशिक्षुभिः गन्तव्यम्-

  1. स्वरूपात् अर्थं प्रति 
  2. नियमात् प्रयोगं प्रति 
  3. वर्णात् प्रयोगं प्रति 
  4. अर्थात् स्वरूपं प्रति 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अर्थात् स्वरूपं प्रति 

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 10 Detailed Solution

अनुवाद - भाषा के अधिगम काल में सीखने के इच्छुकों को समझना चाहिये - 

स्पष्टीकरण -  

  • किसी भी भाषा को सीखने के लिए प्रारंभ में छात्रों को उस भाषा विशेष से सम्बन्धित शब्दों का जब ज्ञान कराया जाता है, तब उस भाषा के सम्पूर्ण वाक्यों के स्वरूप का बोध कराना चाहिये।
  • क्योंकि भाषा अधिगम की प्रारम्भिक अवस्था में सर्वाधिक रूप से आवश्यक यह है कि छात्र के पास उस भाषा से सम्बन्धित शब्दकोश में वृद्धि हो।
  • जिससे जब छात्र भाषा का श्रवण करता है, तो उसे उस भाषा विशेष से सम्बन्धित शब्दों को सुनकर उस का अर्थ बोधगम्य हो, जिससे उसे भाषा अधिगम में बाधा उत्पन्न न हो।
  • इस प्रकार भाषा के अधिगम काल में भाषा अधिगमेच्छुकों को अर्थ से स्वरूप की ओर का अनुसरण करते हुए भाषा का अधिगम करना चाहिये ।
  • जिससे उन्हें भाषा को समझने में कठिनाई अनुभव नहीं होगी।

 

अतः कहा जा सकता है कि भाषा के अधिगमेच्छुकों को अर्थ से स्वरूप की ओर का अनुसरण करते हुए समझना चाहिये।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • स्वरूपात् अर्थं प्रति (स्वरूप से अर्थ की ओर) - स्वरूप से अर्थ की ओर के अन्तर्गत शिक्षक पहले विषय के सम्पूर्ण स्वरूप को छात्रों के समक्ष रखता है, तदुपरांत उसके अर्थ से अवगत कराता है।
  • नियमात् प्रयोगं प्रति (नियम से प्रयोग की ओर)  - इसके अन्तर्गत शिक्षक छात्रों को पहले नियम बताता है, उसके बाद उससे सम्बन्धित उदाहरणों का प्रयोग उनके समक्ष रखता है। यह निगमन विधि है।
  • वर्णात् प्रयोगं प्रति  (वर्ण से प्रयोग की ओर)  - इसमें पहले वर्णों का ज्ञान कराया जाता है, फिर उन वर्णों का प्रयोग सीखाया जाता है।
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