Question
Download Solution PDF"पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेष परिजनं देव! विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।" अत्र कोऽलङ्कारः?
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर :
"पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव।
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।"
इस पद्य में कौन सा अलंकार है?
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत पद्य का अर्थ राजा और याचक इन दोनोंं के दृष्टि से हो सकता है।
शब्द | राजा के पक्ष में | याचक के पक्ष में |
पृथुकार्तस्वरपात्रं | राजा का घर सोने के बडे बडे बर्तनो से युक्त है। | याचक का घर बालकोंं के भूख से रोने का स्थान है। |
भूषितनिःशेषपरिजनं | सारे सेवक अलंकृत है। | सारे सेवक भूमि पर पडे है। |
विलसत्करेणुगहनं | झूमती हुई हथिनियोंं से युक्त महल है। | चूहोंं के खोडे हुए बिलोंं की धूल से भरा घर है। |
- अतः याचक राजा से कहता है, सांप्रत हम दोनोंं का घर समान है।
- इस श्लोक का अर्थ दो पद्धति से होता है, अतः "श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते" अर्थात् चिपके हुए पदोंं से अनेक अर्थोंं का प्रतिपादन होता है, वह श्लेष अलंकार होता है।
अतः स्पष्ट है, श्लेषः यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
Additional Information
- आचार्य विश्वनाथ श्लेष के छह भेद मानते है -
- वर्णप्रत्ययलिंगानां प्रकृत्यो: पदयोरपि। श्लेषाद् विभक्तिवचनभाषाणामष्टधा च स:।।
- अर्थ - 'वर्ण, प्रत्यय, लिंग, प्रकृति, पद, विभक्ति, वचन एवं भाषा' यह श्लेष के छह भेद है।
- वर्णप्रत्ययलिंगानां प्रकृत्यो: पदयोरपि। श्लेषाद् विभक्तिवचनभाषाणामष्टधा च स:।।
- अन्य आचार्य श्लेष के 'शब्दश्लेष' और 'अर्थश्लेष' यह दो भेद मानते है।
- कुछ आचार्य श्लेष के तीन भेद मानते है -
- सभंग श्लेष
- अभंग श्लेष
- सभंगाभंग श्लेष
Last updated on Jul 12, 2025
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